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जैनसाहित्य और इतिहास
नेमिनिर्वाणके कर्ता वाग्भट ( बाहड़ ) छाहड़ के पुत्र थे जो प्राग्वाट या पोरवाड़कुलके थे और अहिच्छत्रपुरमें उत्पन्न हुए थे। इन्होंने न तो अपने किसी गुरु
आदिका नाम लिखा है और न और कोई परिचय ही दिया है । अपने किसी पूर्ववर्ती कवि या आचार्यका भी कहीं स्मरण नहीं किया है, जिससे इनके समयपर कुछ प्रकाश डाला जा सके। परन्तु इतना निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि ये वाग्भटालंकारके कर्त्ता वाग्भटसे पहलेके हैं। क्योंकि वाग्भटालंकार) नेमिनिर्वाणके अनेक पद्यों को उदाहरणस्वरूप उद्धृत किया गया है और जैसा कि आगे बतलाया गया है वाग्भटालंकारके कर्ता वाग्भटका समय वि० सं० ११७९ के लगभग है । अतएव नेमिनिर्वाणकी रचना बारहवीं सदीके प्रारंभके बादकी नहीं हो सकती।
नेमिनिर्वाण काव्यपर भट्टारक ज्ञानभूपगकी एक पंजिका टीका उपलब्ध है । और कोई टीका अभी तक प्राप्त नहीं हुई । जहाँ तक हम जानते हैं ये वाग्भट दिगम्बरसम्प्रदायके अनुयायी थे । नेमिनिर्वाणके प्रथम सर्गके १९ वें पद्यमें कहा है कि वे मल्लि जिन तुम्हारा कल्याण करें, जिन्हें तपके कुठारसे कर्मबल्लीको काट डाला है और जो कुरु ( कुरुवंशी या इश्वाकुवंशी) के सुत होनेपर भी दुःशासन ( कुरुपुत्र दुःशासन राजा और दूसरे पक्षमें दुष्टतासे शासन करनेवाले ) नहीं हुए। इससे मालूम होता है कि वे माल जिनको श्वेताम्बर सम्प्रदायके समान इक्ष्वाकुवंशी राजाकी सुता ( लड़की ) नहीं किन्तु सुत ( लड़का ) मानते थे ।
३ वाग्भटालंकारके कर्ता वाग्भट--इनके पिताका नाम सोमश्रेष्ठी थीं।
१ म० म० आझाजीफे अनुसार ' नागौर 'का पुराना नाम अहिच्छत्रपुर है । देखो ना० प्र० पत्रिका भाग २, पृ० ३२९ । ।
२ नेमिनिर्वाणक छठे सर्गके ' कान्तारभूमौ ' ' जहुर्वसन्ते' और ' नेमिविशाल. नयनो' आदि ४६, ४७ और ५१ नम्बरके पद्य वाग्भटालंकारके चौथे परिच्छेदके ३५, ३९ और ३२ न० के पद्य हैं और सातवें सर्गका ‘वरणा प्रसननिकरा ' आदि २६ वें न० का पद्य चौथे परिच्छेदका ४० नं० का पद्य है ।
३ तपःकुठारक्षतकर्मवल्लिमल्लिर्जिनो वः श्रियमातनोतु । __ कुरोः सुतस्यापि न यस्य जातं दुःशासनत्वं भुवनेश्वरस्य ॥ १९ ४ बंभंडसुत्तिसंपुडमुत्तिअमणिणो पहासमूहव्व । सिरिबाहडत्ति तनओ आसि बुहो तस्स सोमस्स ॥