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चार वाग्भट
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हड़की भी कविने बहुत प्रशंसा की है। उन्होंने भी अपने न्यायोपार्जित धनसे आदि जिनका मन्दिर बनवाया था । नेमिकुमार के पिताका नाम मक्कल ( मोकल) और माताका महादेवी थी I
कौन्तेय कुल कौन-सा है, हम नहीं जानते । परन्तु इन वाग्भटका कुल कोई बहुत प्रतिष्ठित और राजमान्य कुल जान पड़ता है । धनके अतिरिक्त विद्यासे भी यह कुल बहुत समृद्ध था ।
वाग्भट महाकवि थे । काव्यानुशासन के सिवाय इन्होंने अनेक काव्य, नाटक और छन्दोग्रन्थ लिखे थे । उनमें से काव्यानुशासनकी स्वोपज्ञवृत्ति में ( पृ० १५) इन्होंने अपने ‘ ऋषभदेवचरित ' महाकाव्यका एक पद्य उद्धृत किया है और एक जगह ( पृ० २० ) वाग्भट - छन्दोनुशासन की भी चर्चा की है । परन्तु किसी नाटकका उल्लेख नहीं मिला ।
वाग्भटालंकारक कर्तासे ये पीछे हुए हैं और उनसे भिन्न हैं । क्योंकि इन्होंने काव्यानुशासन के गुण- प्रकरण में लिखा है कि दण्डि, वामन, और वाग्भटप्रणीत दश गुण हैं परन्तु मैं तो माधुर्य, ओज और प्रसाद ये तीन ही गुण मानता हूँ ।
काव्यानुशासनसे इस बातका ठीक ठीक पता नहीं चलता कि ये वाग्भट किस सम्प्रदाय के अनुयायी थे परन्तु अधिक संभावना यही है कि वे दिगम्बर होंगे । क्योंकि उन्होंने अपने इस ग्रन्थ में ऋषभदेवचरितके प्रारंभका नीचे लिखा पद्य उद्धत किया है
यत्पुष्पदन्तमुनिसेनमुनीन्द्रमुख्यैः पूर्वैः कृतं सुकविभिस्तदहं विधित्सुः ।
हास्याय कस्य ननु नास्ति तथापि सन्तः शृण्वन्तु कंचन ममापि सुयुक्तिसूक्तम् ॥ इसमें भूलसे जिनसेनकी जगह मुनिसेन छप गया जान पड़ता है । इसका अभिप्राय यह है कि पूर्ववर्ती पुष्पदन्त और जिनसेनादि मुनियोंने जिसे बनाया
१ देखी काव्यानुशासन - टीकाकी उत्थानिका ।
२ विनिर्मितानेकनव्यभव्यनाटक च्छन्दोऽलंकारमहाकाव्य प्रमुख महाप्रबन्धबन्धुरोऽपारतारशास्त्रसागरसमुत्तरणतीर्थायमानशेमुपी ... ... महाकवि श्रीवाग्भटो...
३ अयं च सर्वः प्रपंच: श्रीवाग्भटाभिधस्वोपज्ञछन्दोनुशासने प्रपंक्ति इति नात्रोच्यते ! मुनिश्रीजिनविजयजीके कथनानुसार इस ग्रन्थकी एक ताड़पत्रपर लिखी हुई प्रति पाटण जैन भंडार में है ।