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जैनसाहित्य और इतिहास
है, उसे बनाते हुए मैं किसके हास्यका पात्र न बनूँगा ? और ये दोनों अर्थात् आदिपुराणके कर्ता जिनसेन और महापुराणके कर्ता पुष्पदन्त दिगम्बर सम्प्रदायके ही थे। इनके ग्रन्थोंको वाग्भटने पढ़ा था । _इसके सिवाय नेभिनिर्वाण, चन्द्रप्रभचरित और धनंजयकी नाममालाके उद्धरण भी इसी बातको पुष्टि करते हैं। क्योंकि ये तीनों भी दिगम्बर सम्प्रदायके कवियोंकी रचनायें हैं। _कुछ स्थानों में 'राजीमती-परित्याग' काव्यका भी उल्लेख मिलता है जो शायद पं० आशाधरका 'राजीमती-विप्रलंभ' नामक काव्य हो । परित्याग और विप्रलंभ एकार्थवाची हैं । आशाधरका 'राजीमती-विप्रलंभ' उपलब्ध नहीं है । आश्चर्य नहीं जो ' राजीमती-परित्याग' भी उसका नाम हो । यदि हमारा यह अनुमान ठीक हो तो इन वाग्भटको आशाधरके बाद विक्रमकी चौदहवीं शताब्दिका मानना होगा । ___ काव्यानुशासनमें पचासों ग्रन्थोंके उद्धरण दिये हैं । यदि उनकी अच्छी तरह छानबीन की जाय और पता लगाया जाय कि वे किन किन ग्रन्थोंके हैं तो इससे न केवल कविके समयपर ही प्रकाश पड़ेगा अनेक अपरिचित ग्रन्थोंका भी पता लगेगा।
... १ उद्यानजलकेलिमधुपानवर्णन नेमिनिर्वाण-राजीमतीपरित्यागादौ । पृ० १६ ।
२ तत्राशोर्यथा चन्द्रप्रभकाव्ये-श्रियं क्रियाद्यस्य सुरागमे आदि, पृ० १५ और चन्द्रोदयास्तसमयवर्णनं शिशुपालवध-चन्द्रप्रभचरितादौ, पृ० १६
३ अभिधानकोशो नाममाला। ततो हि शब्दनिश्चयः । ननु प्रयुक्तमेव प्रयुज्यते, अन्यथा प्रयुक्तत्वदापावकाशः, तत्कि नाममालया । मैवम् । सामान्येन प्रयुक्तादर्थावगतिर्भवति । यथा नीवीशब्देन जघनवस्त्रग्रन्थिरुच्यते इति कस्यचिनिश्चयः 'स्त्रियः पुरुषस्य वा' इति संशये नीविराग्रन्थनं नार्या जघनस्थस्य वाससः' इति नाममालापदावलोकनादेव निर्णयो भवति ।