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श्रीचन्द्र और प्रभाचन्द्र
भवतु । मांगल्यं दधति लेखकपाठकयोः । __उक्त तीनों ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंसे यह बात स्पष्ट होती है कि इन तीनोंके कर्ता श्रीचन्द्रमुनि हैं, जो बलात्कारगणके श्रीनन्दि नामक सत्कविके शिष्य थे और जिन्होंने धारा नगरीमें वि० सं० १०८७ और १०८० में उक्त ग्रन्थों की रचना की है।
अब श्रीप्रभाचंद्रचार्यके ग्रन्थोंको देखिए और उनमें सबसे पहले आदिपुराणटिप्पणको लीजिएप्रारंभ--प्रणम्य वीरं विबुधेन्द्रसंस्तुतं निरस्तदोषं वृषभं महोदयम् ।
पदार्थसंदिग्धजनप्रबोधकं महापुराणस्य करोमि टिप्पणम् ॥ अन्त-समस्तसन्देहहरं मनोहरं प्रकृष्टपुण्यप्रभवं जिनेश्वरम् ।
कृतं पुराणे प्रथमे सुटिप्पणं सुखावबोधं निखिलार्थदर्पणम् ।। इति श्रीप्रभाचंद्रविरचितमादिपुराणटिप्पणकं पंचासश्लोकहीनं सहस्रद्वयपरिमाणं परिसमाप्ता (सं) । शुभं भवतु ।
पुष्पदन्तके महापुराणके दो भाग हैं एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण । इन भागोंकी प्रतियाँ अलग अलग भी मिलती हैं और समग्र ग्रंथकी एक प्रति भी मिलती है । श्रीचन्द्रने और प्रभाचन्द्रने दोनों भागोंपर टिप्पण लिखे हैं। श्रीचन्द्रका आदिपुराणका टिप्पण तो अभी तक हमें नहीं मिला परन्तु प्रभाचन्द्रके दोनों भागोंके टिप्पण उपलब्ध हैं। उनमेंसे आदिपुराण-टिप्पणका मंगलाचरण
१ भाण्डारकर रिसर्च इन्स्टिटयूट की प्रति नं० ४६३ (आफ १८७६-७७ )। और प्रशस्ति ऊपर दी जा चुकी है । अब उत्तरपुराणके टिप्पणको लीजिएअन्तिम अंश - इत्याचार्य प्रभाचंद्रदेवविरचितं उत्तरपुराणटिप्पणक यधिकशततमः सन्धिः ।
नित्यं तत्र तवप्रसन्नमनसा यत्पुण्यमत्यद्भुतं यातस्तेन समस्तवस्तुविषयं चेतश्चमत्कारकः । व्याख्यातं हि तदा पुराणममलं स्व(सु)स्पष्टमिष्टाक्षरैः भूयाचेतसि धीमतामतितरां चन्द्रार्कतारावधिः ।। १ ।। तत्त्वाधारमहापुराणगम(ग)नद्यो( ज्ज्यो )ती जनानन्दनः सर्वप्राणिमनःप्रभेदफ्टुता प्रस्पष्टवाक्यैः करैः । भव्याब्जप्रतिबोधकः समुदितो भूभृत्प्रभाचंद्रतो जीयाट्टिपणकः प्रचंडतरणिः सर्वार्थमग्रद्युतिः ॥ २ ॥