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आचार्य जिनसेन और उनका हरिवंश
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द्रव्योंका स्वरूप भी बतलाया गया है। जगह जगह जैनसिद्धान्तोंका निरूपण तो है ही। - हरिवंशकी रचनाके समय तक भगवजिनसेनका आदिपुराण नहीं बना था
और गुणभद्रका उत्तरपुराण तो हरिवंशसे ११५ वर्ष बाद निर्मित हुआ है, इसलिए यह ग्रन्थ उनके अनुकरणपर या उनके आधारपर तो लिखा हुआ हो नहीं सकता, परन्तु ऐसा मालूम होता है कि भगवजिनसेन और गुणभद्रके समान इनके समक्ष भी कविपरमेश्वर या कविपरमेष्ठीका 'वागर्थसंग्रह ' पुराण रहा होगा। भले ही वह संक्षिप्त हो और उसमें इतना विस्तार न हो ।
उत्तरपुराणमें हरिवंशकी जो कथा है, वह यद्यपि संक्षिप्त है परन्तु इस ग्रन्थकी कथासे ही मिलती जुलती है, इसलिए संभावना यही है कि इन दोनोंका भूल स्रोत 'वागर्थसंग्रह' होगा।
ग्रन्थकर्ता और पुन्नाट संघ इस ग्रन्थ के कर्ता जिनसेन पुन्नाट संघके आचार्य थे और वे स्पष्ट ही आदिपुराणादिके कर्त्ता भगवजिनसेनसे भिन्न हैं । इनके गुरुका नाम कीर्तिषेण और दादा गुरुका नाम जिनसेन था, जब कि भगवजिनसनके गुरु वीरसेन और दादा गुरु आर्यनन्दि थे ।
पुन्नाट कर्नाटकका प्राचीन नाम है । संस्कृत साहित्यमें इसके अनेक उल्लेख मिलते हैं । हरिपेगने अपने कथाकोशमें लिखा है कि भद्रबाहु स्वामीकी आज्ञानुसार उनका सारा संघ चन्द्रगुप्त या विशाखाचार्य के साथ दक्षिणापथके पुन्नाट देशमें गया । दक्षिणापथका यह पुन्नाट कर्नाटक ही है । कन्नड़ साहित्यमें भी पुन्नाट राज्यके उल्लेख मिलते हैं । प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता टालेमीने इसका ‘पोन्नट' नामसे उल्लेख किया है । इस देशके मुनि-संघका नाम पुन्नाट संघ था। संघोंके १ इसकी चर्चा पहले ' पद्मचरित और पउमचरिय ' शीर्षक लेख ( पृ० २८२ ) में की
जा चुकी है। २ स्व. डा० पाठक, टी० एस० कुप्पूवामी शास्त्री आदि विद्वानोंने पहले समय-साम्यके
कारण दोनोंको एक ही समझ लिया था। ३ अनेन सह संघोऽपि समस्तो गुरुवाक्यतः ! दक्षिणापथदेशस्थपुन्नाटविषयं ययौ । ॥ ४२-भद्रबाहुकथा