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जैनसाहित्य और इतिहास
नृपुर ( स्त्रीलिंग नृपुरी) एक हो सकते हैं । नरपुरसे नरउर और फिर नरवर रूप सहज ही बन जाते हैं।
गोमंडल और गोंडल एक ही हैं । गोमंडलका ही अपभ्रंशरूप गोंडल है। अभी कुछ समय पहले डा० हँसमुखलाल साँकलियाने गोंडल राज्यके ढांक नामक स्थानकी प्राचीन जैन गुफाओंके विषयमें एक लेख प्रकाशित किया था, जहाँसे कि बहुत-सी दिगम्बर प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं । यह स्थान जूनागढ़से ३० मील उत्तर-पश्चिमकी तरफ गोंडल राज्यके अन्तर्गत है । चूँ कि इस समय गोंडल
और उसके आसपास दिगम्बर-सम्प्रदायके अनुयायियोंका प्रायः अभाव है, इसलिए डा० साहबने अनुमान किया था कि उक्त प्रतिमायें उस समयकी होगी जब दिगम्बर-श्वेताम्बर भेद हुए अधिक समय न बीता था और दोनोंमें आजकलके समान वैमनस्य न था । उक्त लेख जैनप्रकाश ( भाग ४ अंक १-२ ) में प्रकाशित हुआ है और उसपर सम्पादक महाशयने अपना यह नोट दिया है कि पहले श्वेताम्बर भी निर्वस्त्र या दिगम्बर मूर्तियों की पूजा करते थे। ___ यह बात सही है कि पहले श्वेताम्बर भाई भी निर्वस्त्र मूर्तियोंकी पूजा करते थे, लंगोट आदि चिह्नोंवाली प्रतिमायें प्रतिष्ठित करनेकी पद्धति बहुत पीछे शुरू हुई है
और यह भी संभव है कि ढांककी गुफाओंकी मूर्तियाँ मथुराके कंकाली टीलेकी मूर्तियों के समान बहुत प्राचीन कालकी हों; परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि इस समय गोंडलराज्यमें दिगम्बर-सम्प्रदायके अनुयायी नहीं है, इसलिए पहले भी न रहे होंगे। ज्ञानार्णवकी वीसलकी लिखी हुई उक्त प्रतिसे मालूम होता है कि विक्रमकी तेरहवीं शताब्दिमें गोंडलमें दिगम्बर सम्प्रदाय था और उसके सहस्रकीर्ति नामक साधुके लिए वह लिखी गई थी । सहस्रकीर्ति दिगम्बर सम्प्रदायके भट्टारक थे, और इसलिए वहाँ उनके अनुयायी भी काफी रहे होंगे ।
काठियावाड़के ही वर्द्धमानपुरमें जो इस समय बढ़वाणके नामसे प्रसिद्ध है आचार्य जिनसेनने अपना हरिवंशपुराण श० सं० ७०५ में और हरिषेणने अपना कथाकोश श० सं० ८५३ में समाप्त किया था। अतएव काठियावाड़में दिगम्बरसम्प्रदाय काफी प्राचीन कालसे रहा है ।
पहली प्रशस्तिमें एक विलक्षण बात यह है कि आर्यिका जाहिणीने वह प्रति ध्यानाध्ययनशाली, तप:श्रुतनिधान, तत्त्वज्ञ, रागादिरिपुमल्ल और योगी शुभचन्द्रको भेंट की है और ज्ञानार्णव या योगप्रदीपके कर्ता भी शुभचन्द्राचार्य ही माने जाते