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महाकवि वादीभसिंह वादीभसिंहके दो काव्य ग्रन्थ उपलब्ध हैं, गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूड़ामणि । पहला गद्य-काव्य है और दूसरा अनुष्टुप् श्लोकबद्ध पद्य-काव्य । पहला महाकवि वाणकी कादम्बरी और धनपालकी तिलकमंजरीके ढंगका है और जैनोंके काव्यसाहित्यमें बहुत ही महत्त्वकी रचना है। दूसरेकी विशेषता यह है कि कथाके साथ साथ उसमें नीति और उपदेश भी चलता है । कवि श्लोकके पूर्वार्धमें तो अपनी कथाको कहता चलता है और साथ साथ उत्तरार्धमें आथान्तरन्यासके द्वारा कोई न कोई नीति या शिक्षाकी सुन्दर सूक्ति देता जाता है। दोनों काव्योंके कथानक बिल्कुल एक हैं, क्षत्र या क्षत्रियोंमें चूड़ामणिके तुल्य जीवंधर नामक पुराण पुरुषका चरित दोनोंमें निबद्ध है। पहला शृंगारादि रसोंसे परिप्लुत है, अतएव प्रौढ़ लोगोंके लिए है और दूसरा शायद सुकुमारमति कुमारोंके लिए लिखा गया है, इसलिए उसमें शिक्षाकी प्रधानता है। ___ कविने गद्यचिन्तामाणके प्रारंभमें अपने गुरुका नाम आचार्य पुष्पसेन बतलाया है और कहा है कि उन्हीके प्रसादसे उन्हें वादीभसिंहता और मुनिपुंगवता ( आचार्यता ) प्राप्त हुई और अन्तके दो श्लोकोंमें बतलाया है कि उनका वास्तव नाम ओडयदेव था।
१–श्रीपुष्पसेनमुनिनाथ इति प्रतीतो,
दिव्यो मनुहृदि सदा मम संनिदध्यात् । यच्छक्तितः प्रकृतिमूढमतिर्जनोऽपि, वादीभसिंहमुनिपुंगवतामुपैति ॥ ६ -श्रीमद्वादीभसिंहेन गद्यचिन्तामणिः कृतः, स्थेयादोडयदेवेन चिरायास्थानभूषणः ॥ स्थेयादोडयदेवेन वादीभहरिणा कृतः, गद्यचिन्तामणिलॊके चिन्तामणिरिवापरः ॥