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धनपाल नामके तीन कवि १ धक्कड़वंशी धनपाल-इस कविको बहुत ही कम लोग जानते हैं । अपभ्रंश भाषाका यह बहुत प्राचीन कवि है । इसका सिर्फ एक ही ग्रन्थ भविसयत्तकहा ( भविष्यदत्त-कथा ) या पंचमी-कहा उपलब्ध है जिसे सबसे पहले जर्मनीके सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ. जैकोबीने रोमन लिपिमें प्रकाशित किया था और उसके बाद स्व० सी० डी० दलाल और डॉ० पी० डी० गुणेने गायकबाड़ ओरियण्टल सीरीजमें नागरी लिपिमें । डा० जैकोबीकी राय है कि इसकी अपभ्रंश उस समयकी है, जब कि वह बोलचालकी भी भाषा थी, केवल साहित्यकी भाषा नहीं । इसके सिवाय वह नवीं शताब्दिके हरिभद्रसूरिके 'नेमिनाथचरिउ'की भाषासे बहुत कुछ समानता रखती है और उनसे कुछ पीछे की है । डॉ० गुणे भी उसे आचार्य हेमचन्द्रने जिस अपभ्रंशका व्याकरण लिखा है उससे लगभग दो शताब्दि पहलेकी मानते हैं और इस तरह इन दोनोंके मतसे धनपाल ईसाकी दसवीं शताब्दिके कवि जान पड़ते हैं । __ धनपालने अपने ग्रन्थमें सिर्फ इतना ही परिचय दिया है कि वे धक्कड़ नामक वणिक वंशके माएसर पिता और धनश्री देवी माताके पुत्र थे । इसके सिवाय और कुछ भी नहीं लिखा। अपने गुरु या सम्प्रदाय आदिका भी कुछ उल्लेख नहीं किया; परन्तु डा० जैकोबीने बतलाया है कि वे दिगम्बर सम्प्रदायके थे । क्योंकि पंचमीकहामें सोलहवें अच्युत स्वर्गका उल्लेख है जो कि दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार है।
१ सन् १९१८ में प्रकाशित हुआ । २ सन् १९२३ में प्रकाशित ।
३ डा० जेकोबीने उस समय हरिभद्रको ईसाकी नवीं सदीका माना था, परन्तु पीछे मुनिश्रीजिनविजयजीने अपने — हरिभद्रसूरिका समय-निर्णय ' शीर्षक लेखमें अनेक पुष्ट प्रमाणोंसे उनको ७०५ से ७७५ ई० स० के बीचका सिद्ध किया है ।
४ धक्कड़वणिवंसि माएसरहो समुन्भविण ।
धणसिरिदेविसुएण विरइउ सरसइसंभावण ॥ ९