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धनपाल नामके तीन कवि
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८ गुरुवार वि० सं० १२६१ को यह समाप्त हुआ। इसमें १२०० से कुछ अधिक श्लोक हैं।
मुनि श्रीजिनविजयजी इस कविको दिगम्बर सम्प्रदायका बतलाते हैं'। अपना लेख लिखते समय उनके समक्ष इस ग्रन्थकी पूरी प्रति मौजूद थी। उनके दिये हुए उद्धरणोंमें यद्यपि कविके सम्प्रदायका कोई उल्लेख नहीं है परन्तु ग्रन्थके भीतर ऐसी कोई बात अवश्य होगी जिससे वे इस निर्णयपर पहुँचे हैं । पल्लीवाल जाति दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंकी अनुयायी रही है ।
मूल तिलकमंजरीके कर्ता यद्यपि श्वेताम्बरसम्प्रदायके अनुयायी थे परन्तु उनका सार इस दिगम्बरसम्प्रदायके विद्वानने लिखा, और मूलग्रन्थकारको नमस्कार भी किया, इससे उस समयके साहित्यिक विद्वानोंकी उदार-बुद्धि और मतसहिष्णुतापर प्रकाश पड़ता है। वाग्भटालंकारपर भी जो एक श्वेताम्बर कविकी रचना है खण्डेलवाल वंशके पं० वादिराजने-जो दिगम्बर सम्प्रदायके थे-अपनी संस्कृत टीका लिखी है।
देखो, जैन श्वे० का० हेरल्ड वर्ष ११, अंक ७-८-९-१० में 'तिलकमंजरी' शीर्षक गुजराती लेख ।