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जैनसाहित्य और इतिहास
श्वेताम्बर संप्रदायके अनुसार स्वर्ग बारह ही हैं । इसके सिवाय इस ग्रंथके पाँचवीं सन्धिके २० वें कड़वकमें जो 'भजिवि जेण दियंबरि लायउ' पद है उससे भी वे दिगम्बर ही मालूम होते हैं, परन्तु यह आश्चर्य है कि इस कविका पीछेके किसी दिगम्बर जैनग्रन्थकारने कही कोई उल्लेख नहीं किया। इसकी जिन दो हस्तलिखित प्रतियोंके आधारसे पूर्वोक्त एडीशन प्रकाशित हुए हैं, वे भी श्वेताम्बर भंडारोंमें ही प्राप्त हुई हैं, दिगम्बर भंडारोमें अभी तक इसकी के ई प्रतिलिपि नहीं देखी सुनी गई। ___ धक्कड़, धर्कट या धक्कड़वाल वैश्योंकी ही एक जाति है । अपभ्रंश भाषाकी धम्मपरिक्खाके कर्ता हरिषेण भी इसी धक्कड़वंशके हैं जिनका समय वि० सं० १०४४ है। देलवाड़ामें वि० सं० १२८७ का जो तेजपालका शिलालेख है, उसमें भी धर्कट या धक्कड़ ज्ञातिका उल्लेख है'। आबूके दो अन्य शिलालेखोंमें भी इस जातिके लोगोंका जिक्र है । यह धक्कड़वाल जाति अब भी मौजूद है । दिगम्बर जैन डिरेक्टरीके अनुसार सन् १९१४ में इसकी जनसंख्या १२७२ थी। इस जातिके लोग दिगम्बर-जैनधर्मका पालन करते हैं और अधिकांशमें बरारके आकोला और यवतमाल जिलोंमें आबाद हैं । कुछ लोग निजाम राज्यके परभणी जिलेमें भी हैं । मूलमें यह राजपूतानेकी ही जाति है और बघेरवालोंकी तरह यह भी बरारकी ओर चली आई है। हरिषेणने 'सिरिउजपुरणिग्गय-धक्कड़कुल' लिखा है, अर्थात् सिरिउजपुरसे निकला हुआ धक्कड़ कुल । इस सिरिउजपुरका ठीक ठीक पता तो नहीं चला; परन्तु शायद टोंक राज्यके सिरोंजका ही यह पुराना नाम हो । मेवाड़की पूर्व सीमापर टोंक राज्य है और सिरोंज पहले मेवाड़में ही शामिल था। हरिषेणने अपनेको मेवाड़ देशका कहा भी है।
२ महाकवि धनपाल- ये फर्रुखाबाद जिलेके सांकाश्य नामक स्थानमें जन्म लेनेवाले काश्यपगोत्री ब्राह्मण देवर्षिके पौत्र और सर्वदेवके पुत्र थे। पहले ये जैनधर्मके विरोधी थे परन्तु पीछे अपने छोटे भाई शोभनके जिनदीक्षा ले लेनेके बाद स्वयं भी जैनधर्मके उपासक बन गये थे। परमारवंशी राजा सीयकसे लेकर महाराजा भोजके समय तक ये जीवित रहे । वाक्पतिराज मुंजकी राजसभाके ये प्रमुख रत्न थे और मुंजने इन्हें ' सरस्वती की उपाधिसे विभूषित किया था।
१-२ देखो मुनिजिनविजयजी सम्पादित प्राचीन जैन-लेख-संग्रह, पृ० ८६, ९५, १२२ ३ इस समय यह संकिसा नामसे प्रसिद्ध है । ४ श्रीमुंजेन सरस्वतीति सदसि क्षोणीभृताव्याहृतः। -ति० मं०