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जैनसाहित्य और इतिहास
मान लिया है । परन्तु बढ़वाणसे पश्चिममें मारवाड़ नहीं हो सकता । वास्तवमें उक्त पद्य में वत्सराजको पूर्व दिशाका और अवन्तिका राजा कहा है और जयवराहको पश्चिम दिशाका राजा बतलाया है जिसकी चर्चा आगे की गई है । इसलिए हरिवंशकी रचनाके समय श० सं० ७०५ में मालवेपर वत्सराजका ही अधिकार होना चाहिए ।
वत्सराजने गौड़ और बंगाल के राजाओंको जीता था और उनसे दो श्वेत छत्र छीन लिये थे । आगे इन्हीं छत्रोंको राष्ट्रकूट गोविन्द ( द्वि० ) के छोटे भाई ध्रुवराजने चढ़ाई करके उससे छीन लिया था और उसे मारवाड़की अगम्य रेतील भूमिकी तरफ भागने को मजबूर किया था । ओझाजीने लिखा है कि उक्त वत्सराजने मालवेके राजापर चढ़ाई की थी और मालव- राजको बचाने के लिए ध्रुवराज उसपर चढ़ दौड़ा था । यह सही हो सकता है, परन्तु हमारी समझमें यह घटना श० सं० ७०५ के बादकी होगी, ७०५ में तो मालवा वत्सराजके ही अधिकार में था । क्योंकि ध्रुवराजका राज्यारोहण -काल श० सं० ७०७ के लगभग अनुमान किया गया है, उसके पहले ७०५ में तो गोविन्द द्वि० ही राजा था और इसलिए उसके बाद ही ध्रुवराजकी उक्त चढ़ाई हुई होगी ।
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श्वेताम्बराचार्य उद्योतनसूरिने अपनी ' कुवलयमाला' नामक प्राकृत कथा जावालिपुर या जालोर ( मारवाड़ ) में जब श० सं० ७०० के समाप्त होने में एक दिन बाकी था तब समाप्त की थी और उस समय वत्सराजका राज्य था । अर्थात् हरिवंशकी रचना के समय ( श ७०५ में ) तो ( उत्तर में ) मारवाड़ इन्द्रायुध के अधिकार में था और ( पूर्व में ) मालवा वत्सराजके अधिकारमें । परन्तु इसके पाँच वर्ष पहले ( श० ७०० में ), कुवलय - मालाकी रचनाके समय, मारवाड़का अधिकारी भी वत्सराज था । इससे अनुमान होता है कि पहले मारवाड़ और मालवा दोनों ही इन्द्रायुधके अधिकार में थे और वत्सराजने दोनों ही प्रान्त उससे जीते थे । पहले, शक सं० ७०० से पहले,
१ सगकाले वोली वरिसाणसएहिं सत्तहिं गएहिं । एक दिहिं रइआ अवरवेलाए || २ परभडभिउडिभंगो पणईयणरोहिणीकलाचंदो । सिरित्रच्छरायणामो णरहत्थी पत्थिवा जइआ ॥
- जैन साहित्य संशोधक खण्ड ३, अङ्क २