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आचार्य जिनसेन और उनका हरिवंश
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उपयोग किया है; परन्तु इस बातपर शायद किसीने भी विचार नहीं किया कि आखिर यह वर्द्धमानपुर कहाँ था जिसके चारों तरफके राजाओंकी स्थिति इस पद्यमें बतलाई गई है और इसी लिए इसके अर्थमें सभीने कुछ न कुछ गोलमाल किया है। यह गोलमाल इस लिए भी होता रहा कि अभी तक इन्द्रायुध और वत्सराजके राजवंशोंका सिलसिलेवार इतिहास तैयार नहीं हुआ है और उनका राज्य कब कहाँसे कहाँ तक रहा, यह भी प्रायः अनिश्चित है।
अब हमें देखना चाहिए कि चारों दिशाओंमें उस समय जिन-जिन राजाओंका उल्लेख किया है, वे कौन थे और कहाँके थे ।
१ इन्द्रायुध-स्व० चिन्तामणि विनायक वैद्यन बतलाया है कि इन्द्रायुध भण्डि कुलका था और उक्त वंशको वर्म वंश भी कहते थे। इसके पुत्र चक्रायुधको परास्त करके प्रतिहारवंशी राजा वत्सराजके पुत्र नागभट दुसरेने जिसका कि राज्यकाल विन्सेंट स्मिथके अनुसार वि० सं० ८५७-८८२ है कन्नौजका साम्राज्य उससे छीना था। बढ़वाणके उत्तरमें मारवाड़ का प्रदेश पड़ता है। इसका अर्थ यह हुआ कि कन्नौजसे लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुधका राज्य फैला हुआ था।
२ श्रीवल्लभ- यह दक्षिणके राष्ट्रकुट वंशके राजा कृष्ण ( प्रथम ) का पुत्र था । इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द ( द्वितीय ) था । कावीमें मिले हुए ताम्रपटमें भी इसे गोविन्द न लिखकर वल्लभ ही लिखा है, अतएव इस विषयमें सन्देह नहीं रहा कि यह गोविन्द द्वितीय ही था और वर्द्धमानपुरकी दक्षिण दिशामें उसीका राज्य था । श० सं० ६९२ का अर्थात् हरिवंशकी रचनाके १३ वर्ष पहलेका उसका एक ताम्रपत्र भी मिला है।
३ वत्सराज-यह प्रतिहारवंशका राजा था और उस नागावलोक या नागभट दूसरेका पिता था जिसने चक्रायुधको परास्त किया था। हरिवंशके पूर्वोक्त पद्यका गलत अर्थ लगाकर इतिहासज्ञोंने इसे पश्चिम दिशाका राजा बतलाया है और वर्द्धमानपुरकी ठीक अवस्थितिका पता न होनेसे ही उसके पश्चिममें मारवाड़को
१ देखो, सी० वी० वैद्यका ' हिन्दू भारतका उत्कर्ष ' पृ० १७५ । २ म० म० ओझाजीके अनुसार नागभटका समय वि० सं० ८७२ से ८९० हैं । ३ इण्डियन एण्टिक्वेरी जिल्द ५ पृ० १४६ । ४ एपिग्राफिआ इण्डिका जिल्द ६, पृ० २०९