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आचार्य शुभचन्द्र और उनका समय
योगप्रदीप या ज्ञानार्णवकी रचना की।
आगे इतना और कहा गया है कि मुंजने सिंहलकी आँखें फुड़वा दी और उनके जो भोज नामका पुत्र हुआ उसको भी मरवा डालनेका प्रयत्न किया।
कथाके उत्तरार्धमें कालिदास, वररुचि, धनंजय और मानतुंगसूरिको भोजका समकालीन बतलाया है और भक्तामरस्तोत्रके प्रभावसे मानतुंगका ४८ बेड़ियाँ तोड़कर बन्दीगृहसे बाहर निकल आनेकी घटनाका भी वर्णन किया है। ___ यह कथा केवल जैनधर्मका महत्त्व प्रकट करनेके लिए गढ़ी गई है, इतिहासका इसमें सर्वथा अभाव है । भर्तृहरि, शुभचन्द्र और सिन्धुल तथा मुंजको समसामयिक बतलाना दुस्साहस ही है । कहाँ विक्रमकी ग्यारहवीं सदीके मुंज और सिन्धुल और कहाँ सातवीं आठवीं शताब्दिके भर्तृहरि ? इसी तरह कहाँ कालिदास जो विक्रमादित्यकी सभाके रत्न समझे जाते हैं, कहाँ महाकवि धनंजय जिनकी नाममालाका एक श्लोक धवला टीकामें वीरसेनंस्वामीने उद्धृत किया है, कहाँ नन्दवंशके समयके वररुचि, कहाँ हर्षवर्द्धनके समकालीन मानतुंगसूरि और कहाँ विक्रमकी बारहवीं सदीके भोजदेव ।
१ कथाका यह उत्तरार्ध मेरे भाषापद्यानुवादसहित आदिनाथ-रतोत्रकी प्रारम्भिक आवृत्तियामें प्रकाशित हुआ है।
२ चीनी यात्री हुएनसांगने जो वि० सं० ६८६ से ७०२ तक भारतवर्ष में रहा था भर्तृहरिके विषयमें लिखा है कि वे इस समय बहुत प्रख्यात पंडित हैं।
३ सर विलियम जौन्स, डा० पिटर्सन, पं० नन्दर्गीकर आदि विद्वान् कालिदासको विक्रमादित्यका समकालीन अर्थात् ई० स० से ५७ वर्ष पहले का अनुमान करते हैं और कुछ विद्वान् गुप्तकालका-चन्द्रगुप्त द्वितीय या कुमारगुप्त और समुद्रगुप्तका-समकालीन बतलाते हैं । वि० सं० ६९१ के जैन कवि रविकीतिने अपनेको कालिदास और भारविकी कोटिका कवि बतलाया है। इसलिए कमसे कम इसके बाद तो कालिदास हो ही नहीं सकते।
४ देखो धवला टीकाकी भूमिका पृ० ६२ । धवला टीका श० सं० ७३८ ( वि० सं० ८७३ ) में भोजदेवसे कोई दो शताब्दि पहले समाप्त हुई थी।
५ वररुचिका दूसरा नाम कात्यायन है । ये प्रसिद्ध वैयाकरण हैं । इनका काल ई० स० से ३५० वर्ष पहले अनुमान किया जाता है ।
६ भोजदेवका अस्तित्वकाल वि० सं० १०७६ से १०९९ तक है