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महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवन स्वयंभु
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होना तो असन्दिग्ध है । साथ ही इसमें ( अ० ५-९) छठे अवजाईके उदाहरण स्वरूप जो घत्ता उद्धृत की है वह पउमचरिउकी १४ वीं सन्धिमें बहुत ही थोड़े पाठान्तरके साथ मौजूद है , घत्ता छन्दका जो उदाहरण (अ० ७-२७) दिया है वह पउमचरिउकी पाँचवीं सन्धिका पहला पद्य है । 'वम्महतिलअ' का जो उदाहरण है ( अ० ६-४२) वह ६५ वी सन्धिका पहला पये है, ‘रअणावली 'का जो उदाहरण है ( अ० ६-७४), वह ७७ वी सन्धिके १३ वें कड़वकका अन्तिम पद्य है और अ० ६ का जो ७१ वाँ पद्य है वह पउमचरियकी ७७ वी सन्धिका प्रारम्भिक पद्य है । चूँकि ये कविकी अपनी और अपने ही ग्रन्थकी धत्तायें थीं; इसलिए इन्हें विना कर्तीके नामके ही उदाहरणस्वरूप दे दिया गया । यदि अन्य कवियोंकी होती तो उनका नाम देनेकी अवश्यकता होती । इससे भी यही निश्चय होता है कि पउमचरिउके कर्ता स्वयंभुदेव ही स्वयंभु-छन्दके कर्ता हैं । इस छन्दोग्रन्थमें ६-४५, ५८, ९८, १०२, १५२, ८-२,९ पद्य ऐसे हैं जो हरिवंशकी कथाके प्रसंगके हैं और ६, ६५, ६८, ९०, १५५, ८-२१, २५, ऐसे हैं जो रामकथाके प्रसंगके हैं और उदाहरणस्वरूप दिये गये हैं परन्तु कर्ताका नाम नहीं दिया गया है । हमारा
१ कहवि सरुहिरई दिट्ठई णहरई थणसिहरोवरि सुपहुत्तई ।
वेग्गिं वलग्गहो मयणतुरंगहो णं पइ छुडु छुडु खित्तई ॥ ९ २ अक्खइ गउतमसामि, तिहअणलद्धपसंसहो ।
सुण सेणिय उप्पत्ति, रक्खसवाणरवंसहो ।। ३ हणुवंतु रणे परिवढिजई णिसियरहिं ।
णं गयणयले बालदिवायरु जलहरेहिं । ४ सुरवर डामरु रावणु दटूटु जासु जग कंपइ ।
अण्णु कहिं महु चुक्कइ एवणाइ सिहि जंपइ ।। ५ भाइविओएं जिह जिह करइ बिहीसणु सोउ ।
तिह तिह दुक्खेण रुवइ सहरिबलवाणरलोउ । स्वयंभु-छन्दके मुद्रित पाठमें इस पद्यको ' चउमुह 'का बतलाया है, परन्तु असलमें यह लेखककी कुछ असावधानी मालूम पड़ती है । ' चउमुह 'का पद्य वहाँ लिखनेसे छूट गया है और उसके आगे यह स्वयं स्वयंभुका अपना उदाहरण आ गया है ।