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जैनसाहित्य और इतिहास
ग्रन्थ संग्रहमें है, जिसमें १४ पत्र हैं और जो वि० सं० १५६२ की लिखी हुई है। ___ मल्लिषेण नामके अनेक आचार्य हो गये हैं और ग्रन्थ-सूचियोंमें उनके प्रवचन. सारटीका, पंचास्तिकायटीका, वज्रपंजरविधान, ब्रह्मविद्या, कामचण्डालिनी कल्प,
आदि अनेक ग्रन्थोंके नाम मिलते हैं परन्तु उक्त पाँच ग्रन्थोंको छोड़कर अन्य ग्रन्थोके विषयमें जब तक कि वे सामने उपस्थित न हों यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे इन्हींके हैं अथवा अन्यके । सज्जनचित्तवल्लभ नामका एक छोटा-सा २५ पद्योंका काव्य भी मलिपेणका है जो प्रकाशित हो चुका है। उसमें मुनियोंको उपदेश दिया गया है कि तुम अपने चरित्रको निर्मल रक्खो, ग्रामके समीप मत रहो, स्त्रियोंसे सम्पर्क मत रक्खो, परिग्रह धनादिकी आकांक्षा मत रक्खो, भिक्षा में जो कुछ लूग्वा सूखा मिले उसीसे सन्तोषपूर्वक पेट भर लो
और इन्द्रियापर विजय प्राप्त करके अपने यति नामको सार्थक करो। हमारा खयाल है कि इसके कर्ता कोई दूसरे ही मल्लिपेण हैं और वे वनवासी सम्प्रदायके हैं, मठवासी नहीं।
विद्यानुशासन या विद्यानुवाद नामका ग्रन्थ भी मलिषणका बतलाया जाता है परन्तु वास्तवमें वह उनका नहीं है, उनसे पीछके किसी अन्य आचार्यका है। ८६१ में मान्यग्वेटमें रचा गया था । अर्थात् यह मलिषेणसे लगभग सौ वर्ष पहलेकी रचना है । ग्रन्थकी उत्थानिकामें लिखा है कि दक्षिणके मलयदेशके हेमग्राममें द्राविडसंघके अधिपति हेलाच र्य थे। एक बार उनकी शिष्या कमल श्रीको ब्रह्मराक्षस लग गया। उसकी पीडाको देखकर हेलाचार्य नीलगिरिके शिखरपर गय और वहाँ उन्होंने ज्वालामालिनीकी विधिपूर्वक मापना की । सात दिनमें देवीने उपस्थित होकर पूछा कि क्या चाहते हो ? मुनिने कहा, मुझे और कुछ नहीं चाहिए, कमल श्रीको ग्रहमुक्त कर दो । देवीने एक लोहेके पत्रपर मंत्र लिख कर दिया और उसकी विधि बतला दी। इससे शिष्या स्वस्थ हो गई। फिर देवीके आदेशसे हेलाचार्यने ज्वालिनी-मतकी रचना की। उसके बाद परम्परासे यह हेलाचार्य के शिष्य गांगमुनि, नीलग्रीव आदिको प्राप्त हुआ और फिर कंदर्प (?) तथा गुणनन्दि मुनिके पास अध्ययन करके इन्द्रनन्दिने इसकी रचना की।
१ बम्बईके ऐ० पन्नालाल सरस्वती-भवनमें इसकी दो प्रतियाँ हैं : एक सम्पूर्ण है जिसमें २४ अध्याय हैं और दूसरा काव्यसाहित्यतीर्थाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्रीचन्द्रशेखरशास्त्रीकी भाषाटीकाके सहित है, जो अपूर्ण है । अर्थात् उसक केवल ७ अध्याय हैं । जो प्रते सम्पूर्ण