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जैनसाहित्य और इतिहास
कोई व्याकरण भी लिखा था क्योंकि पउमचरिउके एक पद्यमें कहा है कि अपभ्रंशरूप मतवाला हाथी तभी तक स्वच्छन्दतासे भ्रमण करता है जबतक कि उसपर स्वयंभु-व्याकरणरूप अंकुश नहीं पड़ता और इसमें स्वयंभु-व्याकरणका स्पष्ट उल्लेख है।
एक और पद्यमें स्वयंभुको पंचानन सिंहकी उपमा दी गई है, जिसकी सच्छन्दरूप बिकट दाढ़ें हैं, जो छन्द और अलंकाररूप नखोंसे दुष्प्रेक्ष्य है और व्याकरणरूप जिसकी केसर (अयाल ) है। इससे भी उनके व्याकरण ग्रन्थ होनेका विश्वास होता है।
समय-विचार पउमचरिउ और रिहनेमिचरिउमें स्वयंभुदेवने अपने पूर्ववर्ती कवियों और उनके कुछ ग्रन्थोंका उल्लेख किया है जिनके समयसे उनके समयकी पूर्व सीमा निश्चित की जा सकती है । पाँच महाकाव्य, पिंगलका छन्दशास्त्र, भरतका नाट्यशास्त्र, भामह और दंडीके अलंकारशास्त्र, इन्द्रका व्याकरण, व्यास, बागका अक्षराडम्बर (कादम्बरी), श्रीहर्षको निपुणत्व और रविषेणाचार्यकी रामकथा ( पद्मचरित )। समयके लिहाजसे जहाँ तक हम जानते हैं इनमें सबसे पीछेके रविषेण हैं और उन्होंने अपना पद्मचरित वि० स० ७३४ ( वीर-निर्वाण संवत् १२०३ ) में समाप्त किया था । अर्थात् स्वयंभू वि० स० ७३४ के बाद किसी समय हुए हैं।
इसी तरह जिन सब लेखकोंने स्वयंभुका उल्लेख किया है और जिनका समय ___ १ रघुवंश, कुमारसंभव, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय और भट्टि। कोई कोई भट्टिके बदले श्रीहर्षके नैषधचरितको पाँच महाकाव्योंमें गिनते हैं । __ २ नैषधचरितके कर्ता श्रीहर्ष नहीं किन्तु बाणके आश्रयदाता सम्राट हर्ष, जिनके नागानन्द, प्रियदशिका आदि नाटक-ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। श्रीहर्षो निपुणः कविः' आदि पद्य श्री हर्षके नागानन्दका ही है और उसे स्वयंभुछन्दमें उद्धृत किया गया है। इसी पद्यके — निपुण ' विशेषणका अनुकरण स्वयंभुने ‘सिरिहरिमें णियणिउणत्तणउ ' पदमें किया है। नैषधचरितके कर्ता श्रीहर्ष स्वयंभुसे और पुष्पदन्तसे भी पीछे हुए हैं। पुष्पदन्तने भी श्रीहर्ष ( हर्षवर्द्धन ) का ही उल्लेख किया है।
३ देखो मा० जै० ग्रन्थमालामें प्रकाशित पद्मचरितकी भूमिका ।