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वादिराजसूरि
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यशोधरचरितके तीसरे सर्गके अन्तिम ८५ वें पद्यमें और चौथे सर्गके उपान्त्य पद्येमें कविने चतुराईसे महाराजा जयसिंहका उल्लेख किया है । इससे मालूम होता है कि यशोधरचरितकी रचना भी जयसिंहके समयमें हुई है।
राजधानी चालुक्य जयसिंहकी राजधानी कहाँ थी, इसका अभी तक ठीक ठीक पता नहीं लगा है। परन्तु पार्श्वनाथ-चरितकी प्रशस्तिके छठे श्लोकसे ऐसा मालूम होता है कि वह ' कट्टगेरी' नामक स्थानमें होगी जा इस समय मद्रास सदर्न मराठा रेलवेकी गदग-होटगी शाखापर एक साधारण-सा गाँव है और जो बदामीसे १२ मील उत्तरकी ओर है । यह पुराना शहर है और इसके चारों ओर अब भी शहर-पनाहके चिह्न मौजूद हैं । उक्त श्लोकका पूर्वार्द्ध मुद्रित प्रतिमें इस प्रकार है
लक्ष्मीवासे वसति कटके कट्टगातीरभूमौ,
कामावाप्तिप्रमद सुभगे सिंहचक्रेश्वरस्य । इसमें सिंहचक्रेश्वर अर्थात् जयसिंहदेवकी राजधानी ( कटक ) का वर्णन है जहाँ रहते हुए ग्रन्थकर्त्ताने पार्श्वनाथचरितकी रचना की थी। इसमें राजधानीका नाम अवश्य होना चाहिए; परन्तु उक्त पाठसे उसका पता नहीं चलता। सिर्फ इतना मालूम होता है कि वहाँ लक्ष्मीका निवास था, और वह कट्टगानदीके तीरकी भूमिपर थी। हमारा अनुमान है कि शुद्ध पाठ ' कट्टगेरीति भूमौ ' होगा, जो उत्तरभारतके अर्द्धदग्ध लेखकोंकी कृपासे 'कट्टगातीरभूमौ' बन गया है । उन्हें क्या पता कि 'कट्टगेरी' जैसा अड़बड़ नाम भी किसी राजधानीका हो सकता है ? __ जयसिंहके पुत्र सोमेश्वर या आहवमलने ' कल्याण' नामक नगरी बसाई औ वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की । इसका उल्लेख विल्हणने अपने 'विक्रमांक देवचरित' में किया है। कल्याणका नाम इसके पहलेके किसी भी शिलालेख या ताम्रपत्रमें उपलब्ध नहीं हुआ है, अतएव इसके पहले चौलुक्योंकी राजधान
१ व्यातन्वजयसिंहतां रणमुखे दीर्घ दधौ धारिणीम् । २ रणमुखजयसिंहो राज्यलक्ष्मी बभार ॥ ३ सर्ग २ श्लोक १।