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श्रीचन्द्र और प्रभाचन्द्र
ये दो ग्रन्थकर्ता लगभग एक ही समय में, एक ही स्थानपर, हुए हैं और दोनोंने ही महाकवि पुष्पदन्तके महापुराणपर टिप्पण लिखे हैं, इस लिए कुछ विद्वानोंने यह समझ लिया है कि प्रभाचन्द्र और श्रीचन्द्र एक ही हैं, लिपिकर्त्ताओंकी गल्तीसे कहीं कहीं जो 'श्रीचन्द्रकृत ' लिखा मिलता है, सो वास्तव में प्रभाचन्द्रकृत ही होना चाहिए | परन्तु वास्तव में श्रीचन्द्र और प्रभाचन्द्र दो स्वतंत्र ग्रंथकर्त्ता हैं । नीचे लिखे प्रमाणोंसे यह बात सुस्पष्ट हो जायगी
बम्बई के सरस्वती-भवन में ( नं० ४६३ ) में रविषेणाचार्यकृत पद्मचरितका श्रीचन्द्रकृत टिप्पण है । उसका प्रारम्भ और अन्तका अंश देखिए—
प्रारम्भ - शंकरं वरदातारं जिनं नत्वा स्तुतं सुरैः ।
कुर्वे पद्मचरितस्य टिप्पणं गुरुदेशनात् ॥
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सिद्धं जगत्प्रसिद्धं कृतकृत्यं वा समाप्तं निष्ठितमिति यावत् । सम्पूर्णभव्यार्थसिद्धि(द्धेः ) कारणं, समग्रो धर्मार्थकाममोक्षः स चासौ भव्यार्थश्च भव्यप्रयोजनं तस्य सिद्धिर्निष्पत्तिः स्वरूपलब्धिवी तस्याः कारणं हेतुः । किं विशिष्टं हेतुमुत्तमं दोषरहितं ... -लाढ़ (ड़) बागड़ि ( ड़ ) श्रीप्रवचनसेन (?) पंडितात्पद्मचरितस्सकय ( तमाकर्ण्य ?) बलात्कारगणश्रीश्री नन्द्याचार्यसत्कविशिष्येण श्रीचन्द्रमुनिना श्रीमद्विक्रमादित्यसंवत्सरे सप्तासीत्यधिकवर्षसहश्र (से) श्रीमद्धारायां श्रीमतो राजे (ज्ये) भोजदेवस्य
अन्त
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एवमिद (दं) पद्मचरित टिपितं श्रीचन्द्रमुनिकृतसमाप्तमिति ।
स्व० सेठ माणिकचन्द्रजीके चौपाटी के मन्दिरमें इन्हीं श्रीचन्द्रमुनिका एक और ग्रंथ ‘पुराणसार' (नं० १९७ ) है । उसका प्रारम्भ और अन्त इस प्रकार है
१ देखो डा० पी० एल० वैद्य सम्पादित महापुराणकी अँगरेजी भूमिका ।
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२ भवनके रजिस्टर में इसका नाम ' पद्मनन्दिचरित्र ' लिखा हुआ है । यह प्रति हालकी ही लिखाई हुई और बहुत ही अशुद्ध
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