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नैनसाहित्य और इतिहास
३ चौथी संधिके २२ वें कड़वककी 'जजरिउ जेण बहुभेयकम्म' आदि १५ वीं पंक्तिसे लेकर आगेकी १७२ लाइनें भी गंधर्वकी हैं। इसके आगे भी कुछ लाइनें प्रकरणके अनुसार कुछ परिवर्तित करके लिखी गई हैं। फिर एक घत्ता और १५ लाईनें गंधर्वकी हैं जो ऊपर भावार्थसहित दे दी गई हैं।
इस तरह इस ग्रंथमें सब मिलाकर ३३५ पंक्तियाँ प्रक्षिप्त हैं और वे ऐसी हैं कि जरा गहराईसे देखनेसे पुष्पदन्तकी प्रौढ़ और सुन्दर रचनाके बीच छुप भी नहीं सकतीं । अतएव गंधर्वके क्षेपकोंके सहारे पुष्पदन्तको विक्रमकी चौदहवीं शताब्दिमें नहीं घसीटा जा सकता। ___ इसके सिवाय बहुत थोड़ी ही प्रतियोंमें सो भी उत्तर भारतकी प्रतियोंमें ही यह प्रक्षिप्त अंश मिलता है। बम्बईके तेरहपंथी जैनमन्दिरकी जो वि० सं० १३९० की लिखी हुई अतिशय प्राचीन प्रति है, उसमें गन्धर्वरचित उक्त पंक्तियाँ नहीं हैं और ऐलक पन्नालाल सरस्वती-भवनकी दो प्रतियोंमें भी नहीं हैं।
१ अपरिवर्तित पाठ मुद्रित ग्रंथमें न होनेके कारण यहाँ दे दिया जाता है
सो जसवइ सो कल्लाणमित्तु, सो अभयणाउ सो मारिदत्तु । वणिकुलपंकयबोहणदिणेसु, सो गोवड्ढणु गुणगणविसेसु ॥ सा कुसुमावलि पालियति गुत्ति, सा अभयमइत्ति णरिंदपुत्ति । भन्वई दुष्णयणिण्णासणेण, तउ चएवि चारु सण्णासणेण ।
काले जते सव्वइ मयाई, जिणधम्म सग्गग्गहो गहाई ॥ २ बम्बईके सरस्वती-भवनमें जो ( ८०४ क ) संस्कृतछायासहित प्रति है उसमें 'जिणधम्म सग्गग्गहो गहाई'के आगे प्रक्षिप्त पाठकी 'गंधव्वें कण्हडणंदणेण' आदि केवल दो पंक्तियाँ न जाने कैसे आ पड़ी है । इस प्रतिमें इन दो पंक्तियोंको छोड़कर और कोई प्रक्षिप्त अंश नहीं है।