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महाकवि पुष्पदन्त
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(प्रथम) ने श० सं० ७३७ में उसे मान्यखेटमें प्रतिष्ठित की। पुष्पदंतने नागकुमारचरितमें कहा है कि कण्हराय (कृष्णराज) की हाथकी तलवाररूपी जलवाहिनीसे जो दुर्गम है और जिसके धवलगृहोंके शिखर मेघावलीसे टकराते हैं, ऐसी बहुत बड़ी मान्यखट नगरी है'।
राष्ट्रकूटवंशमें कृष्ण नामके तीन राजा हुए हैं, एक तो वे जिनकी उपाधि शुभतुंग थी। परन्तु उनके समय तक मान्यखेट राजधानी ही नहीं थी, इसलिए पुष्पदंतका मतलब उनसे नहीं हो सकता। ___ द्वितीय कृष्ण अमोघवर्ष (प्रथम) के उत्तराधिकारी थे, जिनके समयमें गुणभद्राचार्यने श० सं० ८२० में उत्तरपुराणकी समाप्ति की थी और जिन्होंने श० सं० ८३३ तक राज्य किया है। परन्तु इनके साथ उन सब बातोंका मेल नहीं खाता जिनका पुष्पदन्तने उल्लेख किया है। इसलिए कृष्ण तृतीयको ही हम उनका समकालीन मान सकते हैं । क्योंकि
१-जैसा कि पहले बतलाया जा चुका है चोलराजाका सिर कृष्णराजने कटवाया था, इसके प्रमाण इतिहासमें मिलते हैं और चोल देशको जीत कर कृष्ण तृतीयने अपने अधिकारमें कर लिया था। २-यह चोलनेरश 'परान्तक' ही मालूम होता है जिसने वीरचोलकी पदवी धारण की थी। ____३-धारानरेश-द्वारा मान्यखेटके लूटे जानेका जो उल्लेख पुष्पदन्तने किया है, वह भी कृष्ण द्वितीयके साथ मेल नहीं खाता । यह घटना कृष्णराज तृतीयकी मृत्युके बाद खोटिगदेवके समय की है और इसकी पुष्टि अन्य प्रमाणोंसे भी होती है। धनपालने अपनी 'पाइयलच्छी (प्राकृतलक्ष्मी) नाममाला' में लिखा है कि वि० सं० १०२९ में मालव-नरेन्द्रने मान्यखेटको लूटां।
१ सिरिकण्हरायकरयलणिहिय असिजलवाहिणि दुग्गयरि ।
धवलहरसिहरिहयमेह उलि पविउल मण्णखेडणयार ।। २ उब्बद्धजडु भूभंगभीसु, तोडेप्पिणु चोडहो तणउ सीसु । ३ दीनानाथधनं सदाबहुजनं प्रोत्फुलवल्लीवनं,
मान्याखेटपुरं पुरंदरपुरीलीलाहरं सुन्दरम् । धारानाथनरेन्द्रकोपशिखिना दग्धं विदग्धप्रियं,
क्वेदानी वसतिं करिष्यति पुनः श्रीपुष्पदन्तः कविः ।। ४-विक्कमकालस्स गए अउणुत्तीसुत्तरे सहस्सम्मि ।
मालवणरिंदधाडीए लूडिए मण्णखेडम्मि ॥ २७६ ॥