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सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत
ये भगवान् सोमदेव समस्त विद्याओंके दर्पण, यशोधरचरितके ( यशस्तिलक चम्पूके) रचयिता, स्याद्वादोपनिषत्के कर्त्ता, और दूसरे भी सुभाषितोंके निर्माता हैं । तमाम महासामन्तोंके मस्तकोंकी पुष्पमालाओंसे जिनके चरण सुगन्धित हैं; जिनका यशःकमल समस्त विद्वज्जनोंके कानोंका आभूषण है और तमाम राजा
ओंके मस्तक जिनके चरण-कमलोंसे शोभायमान होते हैं। __ स्वस्ति । श्रीपृथिवीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक श्रीमत् अमोघवर्षदेवके चरणोंका ध्यान करनेवाले अकालवर्ष श्रीकृष्णराजेदेवके सेवक (पादपद्मोपजीवी) महासामन्ताधिपति चालुक्यवंशोद्भव और गन्धवारण, गन्धेभ, विद्याधर, प्रियगल्ल, त्रिभुवनमल्ल, उदात्तनारायण, प्रत्यक्षवादलि, विक्रमार्जुन, गुणनिधि, गुणार्णव, सामन्तचूडामणि आदि अनेक विरुदावलियोंसे शोभित उस अरिकेसरीने अपनी लंबुलपाटक नामक राजधानीके अपने पिता श्रीमत् बद्यगके 'शुभधामजिनालय' नामक मन्दिर (बसति ) की मरम्मत ( खण्डस्फुटित ), चूनेकी कलई करने ( नवसुधाकर्म ), और पूजोपहार चढ़ाने के लिए. ( बलिनिवेद्यार्थ) शकके ८८८ वर्ष बीत जाने और क्षय संवत्सरके शुरू होनेपर वैशाख पूर्णिमा, बुधवारके दिन पूर्वोक्त श्री सोमदेवसूरिको सब्बिदेश सहस्रान्तर्गत रेपाक द्वादशोमेका बनिकटुपुलु नामका गाँव त्रिभोगाभ्यन्तरसिद्धि और सर्वनमस्य सहित जलधारा छोड़कर दिया। उसके पूर्वमें दरियूरु, दक्षिणमें इलिन्दिकुट, पश्चिममें वेल्लालपटु और उत्तरमें कट्टाकूरु, इस प्रकार चार
शाम ।
१ राष्ट्रकूटनरेश जगत्तुंगके दूसरे पुत्र अमोघवर्ष तृतीय । २ अमोघवर्ष तृतीयके पुत्र । इन्हीके समयमें यशस्तिलक चम्पूकी रचना हुई थी। ३ निजाम स्टेटके करीम नगर ज़िलेका ‘वेमुलवाडा ' नामका गाँव ।
४ श्रीयुत जी० एच० खरे महाशयने गणना करके देखा तो मालूम हुआ कि वैशाख पूर्णिमाको बुधवार नहीं आता है । अप्रेल सन् ९६६ को यह दिन पड़ता है । ताम्रपटके लिखनेवालेकी भूल जान पड़ती है। __ ५ श्रीयुत खरे महाशयने हैद्राबादके इंजीनिअर श्रीयुत गाडगीलकी सहायतासे सब्बि
और दरियूरुके सिवाय अन्य सब गाँवोंके वर्तमान नामोंका पता लगा लिया है। ये सब करीमनगर जिले में हैं । इनके नाम क्रमसे इस प्रकार हैं—रेपाक, वोटुडपुल्ल ( वनिकटुपलु ), इल्लन्दकुट ( इलिन्दिकुट ), वल्लम् पुटला ( वेल्लालपटु), कुटकूर ( कट्टाकूर )