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पद्मचरित और पउमचरिय
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राजा दशरथ काशी देशमें वाराणसीके राजा थे । रामकी माताका नाम सुबाला और लक्ष्मणकी माताका नाम केकेयी था । भरत-शत्रुघ्न किसके गर्भमें आये थे, यह स्पष्ट नहीं लिखा । केवल 'कस्यांचित् देव्यां' लिख दिया है। सीता मन्दोदरीके गर्भसे उत्पन्न हुई थी; परन्तु भविष्यद्वक्ताओंके यह कहनेसे कि वह नाशकारिणी है, रावणने उसे मंजूषामें रखवाकर मरीचिके द्वारा मिथिलामें भेजकर जमीनमें गड़वा दिया । दैवयोगसे हलकी नोकमें उलझ जानेसे वह राजा जनकको मिल गई और उन्होंने उसे अपनी पुत्रीके रूपमें पाल ली। इसके बाद जब वह ब्याहके योग्य हुई, तब जनकको चिन्ता हुई। उन्होंने एक वैदिक 'यज्ञ' किया और उसकी रक्षाके लिए राम-लक्ष्मणको आग्रहपूर्वक बुलवाया। फिर रामके साथ सीताको ब्याह दिया। यज्ञके समय रावणको आमंत्रण नहीं भेजा गया, इससे वह अत्यन्त क्रुद्ध हो गया और इसके बाद जब नारदके द्वारा उसने सीताके रूपकी अतिशय प्रशंसा सुनी तब वह उसको हर लानेकी सोचने लगा।
केकेयीके हठ करने, रामको वनवास देने, आदिका इस कथामें कोई जिक्र नहीं है । पंचवटी, दण्डकवन, जटायु, सूर्पनखा, खरदूषण आदिके प्रसंगोंका भी अभाव है । बनारसके पासके ही चित्रकूट नामक वनसे रावण सीताको हर ले जाता है
और फिर उसके उद्धारके लिए लंकामें राम-रावण युद्ध होता है। रावणको मारकर राम दिग्विजय करते हुए लौटते हैं और फिर दोनों भाई बनारसमें राज करने लगते हैं । सीताके अपवादकी और उसके कारण उसे निर्वासित करनेकी भी चर्चा इसमें नहीं है । लक्ष्मण एक असाध्य रोगमें ग्रसित होकर मर जाते हैं और इससे रामको उद्वेग होता है। वे लक्ष्मणके पुत्र पृथ्वीसुन्दरको राजपदपर और सीताके पुत्र अजितंजयको युवराजपदपर अभिषिक्त करके अनेक राजाओं, और अपनी सीता आदि रानियों के साथ जिन-दीक्षा ले लेते हैं।
इसमें सीताके आठ पुत्र बतलाये हैं, पर उनमें लव-कुशका नाम नहीं है । दशानन विनमि विद्याधरके वंशके पुलस्त्यका पुत्र था। शत्रुओंको रुलाता था, इस कारण वह रावण कहलाया । आदि।
जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह उत्तरपुराणकी राम-कथा श्वेताम्बर सम्प्रदायमें प्रचलित नहीं है । आचार्य हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमें जो राम-कथा है, उसे मैंने पढ़ा है । वह बिल्कुल 'पउमचरिय' की कथाके अनुरूप है । ऐसा मालूम होता. है कि पउमचरिय और पद्मचरित दोनों ही हेमचन्द्राचार्यके सामने मौजूद थे।