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जैनसाहित्य और इतिहास
लिखा है कि विमान और भवन ये दो स्वप्न ऐसे हैं कि इनमेंसे जिनमाताओंको एक ही आता है । जो तीर्थकर देवत्वसे च्युत होकर आते हैं उनकी माता विमान देखती है और जो अधो लोकसे आते हैं उनकी माता भवन देखती है । परन्तु पउमचरियमें विमान और भवन दोनों ही स्वप्न मरुदेवीने एक साथ देखे हैं।
३-दूसरे उद्देसकी ३० वी गाथामें भगवानको जब केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब उन्हें ' अष्टकर्मरहित' विशेषण दिया गया है और यह विशेषण शायद दोनों सम्प्रदायोंकी दृष्टिसे चिन्तनीय है। क्योंकि केवल-ज्ञान होते समय केवल चार घातिया कर्मोंका ही नाश होता है, आठोंका नहीं।
४-दूसरे उद्देसकी ६५ वी गाथामें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिको स्थावर और द्वीन्द्रियादि जीवोंको त्रस कहा है। यह दिगम्बर मान्यता है । श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुसार पृथ्वी, जल और वनस्पति ही स्थावर हैं, अग्नि, वायु और द्वीन्द्रियादि त्रस हैं ।
५-चौथे उद्देसकी ५८ वी गाथामें भरत चक्रवर्तीकी ६४ हजार रानियाँ बतलाई हैं । यह संख्या श्वेताम्बर-परम्पराके अनुसार है, दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार चक्रवर्तीकी ९६ हजार रानियाँ होती हैं ।
६-पउमचरियके दूसरे उद्देसमें भगवान् महावीर बाल-भावसे उन्मुक्त होकर तीस बरसके हो गये और फिर एक दिन संवेग होनेसे उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण कर
१ पद्मचरितमें दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार स्वप्नोंकी संख्या १६ कर दी गई है" अद्राक्षीत्योडशस्वप्नानिति श्रेयोविधायिनः ।।"
२ अह अहकम्मरहियस्स तस्स झाणोवओगजुत्तस्स । __ सयलजगुजोयगरं केवलणाणं समुप्पणं ।। ३० ३ पुढवि-जल-जलण-मारुय-वणस्सई चेव थावरा भणिया ।
वेइंदियाइ जावउ, दुविहतसा सणि इयरे वा ॥ ६५ ४ चउसहिसहस्साई जुवईणं परमरूवधारीणं।
वत्तीसं च सहस्सा राईणं बद्धमउडाणं ।। ५८ ५-पद्मचरितमें रविषेणने यह संख्या अपने सम्प्रदायके अनुसार संशोधित करके ९६ हजार कर दी है-" पुरन्ध्रीणां सहस्राणि नवतिः षड्भिरन्विताः।"