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जैनसाहित्य और इतिहास
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महापुराणकी प्रथम सन्धिके छठे कड़वकमें जो ' वीरभइरवणरिंदु' शब्द आया है, उसपर प्रभाचंद्रकृत टिप्पण है- ." वीरभैरवः अन्यः कश्चिद्दुष्टः महा राजो वर्तते, कथा - मकरन्दनायको वा कश्चिद्राजास्ति । इससे अनुमान होता है कि 'कथा - मकरन्द' नामका भी कोई ग्रन्थ पुष्पदंतने बनाया होगा जिसमें इस राजाको अपनी श्रीविशेषसे सुरेन्द्रको जीतनेवाला और पर्वत के समान धीर बतलाया है । भरतमंत्री ने इसीको लक्ष्य करके कहा था कि तुमने इस राजाकी प्रशंसा करके जो मिथ्यात्वभाव उत्पन्न किया है, उसका प्रायश्चित्त करने के लिए महापुराणकी रचना करो | यह बहुत करके अपभ्रंश भाषाका ही काव्य-ग्रंथ होगा और महापुराण से पहले का होगा ।
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२ णायकुमारचरिउ ( नागकुमारचरित ) । यह एक खंडकाव्य है । इसमें ९ सन्धियाँ है और यह गण्णणामंकिय ( नन्ननामांकित ) है | इसमें पंचमी के उपवासका फल बतलानेवाला नागकुमारका चरित है । इसकी रचना बहुत ही सुन्दर और प्रौढ़ है ।
यह मान्यखेटमें नन्नके मन्दिर ( महल ) में रहते हुए बनाया गया है । प्रारंभमें कहा गया है कि महोदधिके गुणवर्म और शोभन नामक दो शिष्योंने प्रार्थना की कि आप पंचमी - फलकी रचना कीजिए, महामात्य नन्नने भी उसे सुनने की इच्छा प्रकट की और फिर नाइल और शीलभट्टने भी आग्रह किया । ३ जसहरचरिउ ( यशोधरचरित ) | यह भी एक सुन्दर खंडकाव्य है और इसमें यशोधर नामक पुराण- पुरुषका चरित वर्णित है । इसमें चार सन्धियाँ हैं । यह कथानक जैनसम्प्रदाय में इतना प्रिय रहा है कि सोमदेव, वादिराज, वासवसेन, सोमकीर्ति, हरिभद्र, क्षमाकल्याण आदि अनेक दिगम्बर - श्वेताम्बर लेखकोंने इसे अपने अपने ढंग से प्राकृत और संस्कृत में लिखा है ।
यह ग्रन्थ भी भरत के पुत्र और वल्लभनरेन्द्र के गृहमंत्रीके लिए उन्हीं के महलमें रहते हुए लिखा गया था, इसलिए कविने इसके लिए प्रत्येक सन्धिके अन्तमें ' णण्णकण्णाभरण ( नन्नके कानोंका गहना ) विशेषण दिया है । इसकी
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१ कोंडिष्णगोत्तणहदिणयरासु, वल्लहणरिंदघर महयरासु । णष्णहो मंदिर घिसंतु संतु, अहिमाणमेरु कइ पुप्फयतु । - नागकुमारचरित १-२-२