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महाकवि पुष्पदन्त
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पहलेमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवका और दूसरेमें शेष तेईस तीर्थंकरोंका और उनके समयके अन्य महापुरुषोंका । उत्तरपुराणमें पद्मपुराण ( रामायण) और हरिवंशपुगणं ( महाभारत ) भी शामिल हैं और ये भी कहीं कहीं पृथक् रूपमें मिलते हैं । ___ अपभ्रंश ग्रंथोंमें सर्गकी जगह सन्धियाँ होती हैं । आदिपुराणमें ८० और उत्तरपुराणमें ४२ सन्धियाँ हैं । दोनोंका श्लोकपरिमाण लगभग बीस हजार है । इसकी रचनामें कविको लगभग छह वर्ष लगे थे।
यह एक महान् ग्रन्थ है और जैसा कि कविने स्वयं कहा है, इसमें सब कुछ है और जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है । __ महामात्य भरतकी प्रेरणा और प्रार्थनासे यह बनाया गया, इसलिए कविने इसकी प्रत्येक सन्धिके अंतमें इसे ' महाभवभरताणुमणिए ' ( महाभव्यभरतानुमानिते ) विशेषण दिया है और इसकी अधिकांश सन्धियोंमें प्रारम्भमें भरतका विविध-गुणकीर्तन किया है।
जैनपुस्तकभण्डारोंमें इस ग्रन्थकी अनेकानेक प्रतियाँ मिलती हैं । इसपर अनेक टिप्पण-ग्रन्थ भी लिखे गये हैं, जिनमेंसे आचार्य प्रभाचंद्र और श्रीचंद्र मुनिके दो टिप्पण उपलब्ध भी हैं । श्रीचंद्रने अपने टिप्पणमें लिखा है --' मूलटिप्पणिकां चालोक्यकृतमिदं समुच्चयटिप्पणं । ' इससे मालूम होता है कि इस ग्रन्थपर स्वयं ग्रन्थकांकी लिखी हुई मूल टिप्पणिका भी थी, जिसका उपयोग श्रीचन्द्रने किया हैं । जान पड़ता है कि यह ग्रन्थ बहुत लोकप्रिय और प्रसिद्ध रहा है ।
१ केवल हरिवंशपुराणको जर्मनीके एक विद्वान् ‘ आल्स डर्फ ' ने जर्मनभाषामें सम्पादित करके प्रकाशित किया है । २-अत्र प्राकृतलक्षणानि सकला नीतिः स्थितिच्छन्दसा
मर्थालंकृतयो रसाश्च विविधास्तत्त्वार्थनिर्णीतयः । किञ्चान्यद्यदिहास्ति जैनचरिते नान्यत्र तद्विद्यते ।
द्वावेतौ भरतेशपुष्पदशनौ सिद्धं ययोरीदृशम् । ३ ये गुणकीर्तनके सम्पूर्ण पद्य महापुराणके प्रथम खंडकी प्रस्तावनामें और जैनसाहित्य. संशोधक खंड २ अंक १ के मेरे लेखमें प्रकाशित हो चके हैं।
४ प्रभाचन्द्रकृत टिप्पण परमार राजा जयसिंहदेवके राज्यकालमें और श्रीचन्द्रका भोजदेवके राज्यकालमें लिखा गया है। देखो, आगेके पृष्ठोंमें ' श्रीचन्द्र और प्रभाचन्द्र ' शीर्षक लेख ।