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चामुण्डराय और उनके समकालीन आचार्य वीर- मार्तण्ड चामुण्डराय
जिस प्रकार श्वेताम्बर सम्प्रदाय में वस्तुपाल और तेजपाल मंत्री की प्रसिद्धि है उसी तरह दिगम्बर सम्प्रदाय में चामुण्डराय या चावुंडरायकी । उनका घरू नाम गोम्मट था और ' , राय राजा राचमल्लद्वारा मिली हुई पदवी थी, इसलिए गोम्मटराय नामसे भी उनका उल्लेख मिलता है । डा० आदिनाथ उपाध्येने अपने एक लेख में सप्रमाण सिद्ध कर दिया है कि बाहुबलि स्वामीकी मूर्तिका नाम गोम्मट-जिन या गोम्मटेश्वर इसी कारण प्रसिद्ध हुआ है कि वह चामुण्डरायद्वारा निर्मापित हुई थी और आचार्य नेमिचन्द्रका पंच- संग्रह भी गोम्मट-सार, गोम्मटसंग्रह, या गोम्मट - संग्रह-सूत्र इसीलिए कहलाया कि वह चामुण्डरायके लिए उनके प्रश्न के अनुरूप धवलादि सिद्धान्तोंपर से संग्रह किया गया था । अष्ण भी उनका एक बोलचालका नाम था । केवल ' राय ' या ' देव ' नामसे भी उनका उल्लेख किया गया है | चामुण्डराय ब्रह्म-क्षत्रिय कुलके थे । इस कुलके विषय में हमें कुछ पता नहीं । संभव है, उनके पूर्वज पहले ब्राह्मण रहे हो और पीछे क्षात्रवृत्ति करने लगे हों ।
वे गंगवंशी राजा राचमलके अमात्य ( मंत्री ) और सेनापति थे । राचमल्ल १ देखो अनेकान्त वर्ष, ४ अंक ३-४ ।
२ बाहुबलिचरितमें चामुंडरायको 'ब्रह्म-क्षत्रिय वैश्यसुक्ति-सुमणिः ' कहा है ।
३ यह वंश भैसूर प्रान्तमें ईसाकी चौथीसे लेकर ग्यारहवीं सदीतक रहा है । आधुनिक मैसूरका अधिकांश भाग गंगराजाओंके ही अधिकार था। इनकी राजधानी पहले कोलार ( पालार नदीके किनारे ) थी, जो पीछे कावेरीके तटपर तलकाड चली गई थी। इस राजवंशका जैनधर्मसे घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । गोम्मटसारके टीकाकर्त्ता अभयचन्द्रने इसे ' सिंहनन्दिमुनीन्द्रामिनन्दित ' राजवंश कहा । कई जगह सिंहनन्दिको इस राजवंशकी जड़ जानेवाला भी बतलाया है ।