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जैनसाहित्य और इतिहास
माताका मुग्धा देवी था।
उनके माता पिता पहले शैव थे, परन्तु पीछे किसी दिगम्बर जैन गुरुके उपदेशामृतको पाकर जैन हो गये थे और अन्तमें उन्होंने जिन-संन्यास लेकर शरीर त्यागा था । नागकुमारचरितके अन्तमें कविने और और लोगोंके साथ अपने माता पिताकी भी कल्याण-कामना की है और वहाँ इस बातको स्पष्ट किया है। इससे अनुमान होता है कि कवि स्वयं भी पहले शैव थे ।
कविके आश्रयदाता महामात्य भरतने जब उनसे महापुराणके रचनेका आग्रह किया, तब कहा कि तुमने पहले भैरव नरेन्द्रको माना है और उसको पर्वतके समान धीर वीर और अपनी श्रीविशेषसे सुरेन्द्रको जीतनेवाला वर्णन किया है। इससे जो मिथ्यात्वभाव उत्पन्न हुआ है, उसका यदि तुम इस समय प्रायश्चित्त कर डालो, तो तुम्हारा परलोक सुधर जाय । इससे भी मालूम होता है कि पहले 'पुष्पदन्त शैव होंगे और शायद उसी अवस्थामें उन्होंने भैरवनरेन्द्रकी कोई यशोगाथा लिखी होगी।
स्तोत्र-साहित्यमें 'शिवमहिम्न स्तोत्र' बहुत प्रसिद्ध है और उसके कर्ताका नाम 'पुष्पदन्त' है। असम्भव नहीं जो वह इन्हीं पुष्पदन्तकी उस समयकी रचना १ मूल पंक्तियाँ कठिन होनेके कारण यहाँ उन्हें सस्कृतच्छायासहित दिया जाता है ।
सिवभत्ताई मि जिणसण्णासें वे वि मयाई दुरियणिण्णासें । बंभणाई कासवरिसिगोत्तइं गुरुवयणामियपूरियसोत्तई ।। मुद्धाएवीकेसवणामई महु पियराइं होतु सुहधामइं । [शिवभक्तौ आप जिनसंन्यासेन द्वौ अपि मृतौ दुरितानिर्णाशेन । ब्राह्मणौ काश्यपऋषिगोत्रौ गुरुवचनामृतपूरितश्रोत्रौ ।
मुग्धादेविकेशवनामानौ मम पितरौ भवतां सुखधामनी ॥] ' गुरु ' शब्दपर मूल प्रतिमें - दिगम्बर ' टिप्पण दिया हुआ है। २ णियसिरिविसेसणिज्जियसुरिंद, गिरिधीरवीरभइरवणरिंदु । पई मण्णिउ वण्णिउ वीरराउ, उप्पण्णउ जो मिच्छत्तभाउ ।
पच्छित्तु तासु जइ करइ अज्जु, ता घडइ तुज्झु परलोयकज्जु । ३ आगे बतलाया है कि यह यशोगाथा शायद ' कथामकरन्द ' नामकी होगी और उसका नायक भैरव-नरेन्द्र । भैरव कहाँके राजा थे, इसका अभी तक पता नहीं लगा ।