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पद्मचरित और पउमचरिय
ली । इसमें उनके विवाहित होने की कोई चर्चा नहीं है और कुमारावस्था में ही दीक्षित होना प्रकट किया है' । बीसवें उद्देसकी गाथा ९७-९८ से भी यही ध्वनित होता है कि मल्लिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्व, महावीर और वासुपूज्य ये पाँच तीर्थंकर कुमार-काल में ही घरसे निकल गये और शेष तीर्थकर पृथ्वीका राज्य भोगकर निष्क्रान्त हुए । कहने की आवश्यकता नहीं कि यह उल्लेख दिगम्बरपरम्पराके अनुकूल है । यद्यपि अभी अभी एक विद्वान् से मालूम हुआ है कि श्वेताम्बर सम्प्रदायके एक प्राचीन ग्रन्थ में भी महावीरको अविवाहित बतलाया है ।
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परिश्रम करनेसे इस तरह की और भी अनेक बातोंका पता लग सकेगा जिनमें से कुछ दिगम्बर सम्प्रदाय के अधिक अनुकूल होंगी और कुछ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ।
इन सब बातों से हमारा झुकाव इस तीसरी विचार-धारा के विषय में इस ओर होता है कि वह उस समयकी है जब दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों के मतभेद व्यवस्थित और दृढ़ नहीं हुए थे । उन्होंने आगे चल कर ही धीरे धीरे स्थायित्व और दृढत्व प्राप्त किया है । पहले वे किसी ग्रन्थके पाठ-भेदों के समान साधारण मत-भेद थे, परन्तु पीछे समयने और सम्प्रदाय - मोहने उन्हें मजबूत बना दिया ।
हमारा अनुमान है कि शायद यह तीसरी विचार-धारा वह है जिसका प्रतिनिधित्व यापनीय संघ करता था और जो अब लुप्त हो गया है और पउमचरिय शायद उसीके द्वारा बहुत समय तक सुरक्षित रहा है । इस बात की पुष्टि महाकवि स्वयंभूके ' पउमचरिय ' से होती है जो यापनीय संघके थे और जिन्होंने अपने समक्ष उत्तरपुराणानुमोदित रामायण कथाके रहते हुए भी पउमचरियका ही अनुसरण किया है ।
१ - सुखइदिन्नाहारो अंगुडयअमयलेवलेहेणं, उम्मुक्कबालभावो तीसइ वरिसो जिणो जाओ । अह अन्नया कयाई संवेगपरो जिणो मुणियदोसो, लोगंतियपरिकिष्णो पव्वज्जमुवागओ वीरो || ३० २ - निद्धंतकणयवण्णा सेसा तित्थंकरा समक्खाया, मल्ली अरिनेमी पासो वीरो य वासपुजो य ॥ ९७ एए कुमारसीहा गेहाओ णिग्गया जिनवरिंदा, सा वि हु रायाणो पुई भोत्तूण णिक्खता ॥ ९८