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जनसाहित्य और इतिहास
जो बहुत प्राचीन नहीं है । हमारा अनुमान है कि गुणभद्रसे बहुत पहले विमलपूरिके ही समान किसी अन्य आचार्यने भी जैनधर्मके अनुकूल सोपपत्तिक और वश्वसनीय स्वतंत्र रूपसे राम-कथा लिखी होगी और वह गुणभद्राचार्यको गुरु-परम्पराद्वारा मिली होगी । गुणभद्रके गुरु जिनसेनस्वामीने अपना आदिपुराण कविपरमेश्वरकी गद्य-कथाके आधारसे लिखा था-"कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथामातृकं पुरोश्चरितमं । ” और उसके पिछले कुछ अंशकी पूर्ति स्वयं गुणभद्रने भी की है । जिनसेनस्वामीने कविपरमेश्वर या कविपरमेष्ठीको 'वागर्थसंग्रह' नामक समग्र पुराणका कर्ता बतलाया है। अतएव मुनि सुव्रत तीर्थकरका चरित्र भी गुणभद्रने उसीके आधारसे लिखा होगा जिसके अन्तगत राम-कथा भी है। वामुण्डरायने भी कवि परमेश्वरका स्मरण किया है।
गरज यह कि पउमचरिय और उत्तरपुराणकी राम-कथाकी दो धारायें अलग अलग स्वतंत्ररूपसे निर्मित हुई और वे ही आगे प्रवाहित होती हुई हम तक आई हैं ।
इन दो धाराओंमें गुरुपरम्परा-भेद भी हो सकता है। एक परम्पराने एकधाराको अपनाया और दूसरीने दूसरीको । ऐसी दशामें गुणभद्र स्वामीने पउमचरियकी चारासे परिचित होनेपर भी इस खयालसे उसका अनुसरण न किया होगा कि वह हमारी गुरुपरम्पराकी नहीं है । यह भी संभव हो सकता है कि उन्हें पउमचरियके कथानककी अपेक्षा यह कथानक ज्यादा अच्छा मालूम हुआ हो ।
पउमचरियकी रचना वि० सं० ६० में हुई है और यदि जैनधर्म दिगम्बरधेताम्बर-भेदोंमें वि० सं० १३६ के लगभग ही विभक्त हआ है जैसा कि दोनों १-देखो उत्तरपुराणकी प्रशस्ति ।
२-स पूज्यः कविभिलॊके कवीनां परमेश्वरः ।।
वागर्थसंग्रहं कृत्स्नपुराणं यः समग्रहीत् ।। ६० ।-आदिपुराण ३ महामात्य चामुण्डरायका बनाया हुआ त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण ( चामुण्डराय-पुराण ) निडीभाषामें है । उसके प्रारम्भमें लिखा है कि इस चरित्रको पहले कूचि भट्टारक, तदनन्तर नन्दिमुनीश्वर, फिर कविपरमेश्वर और तदनन्तर जिनसेन-गुणभद्र आचार्य, एकके बाद एक, परम्परासे कहते आये हैं । इससे भी मालूम होता है कि कविपरमेश्वरका चौवीसों तीर्थकरोंका चरित्र था। चामुण्डरायके समान गुणभद्रने भी उसीके आधारसे उत्तरपुराण लिखा होगा और कविपरमेश्वरसे भी पहले नन्दिमुनि और कूचिभट्टारकके इस विषयके ग्रन्थ होंगे।