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जैनसाहित्य और इतिहास
जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, दिगम्बर सम्प्रदायमें भी इसी कथाका अधिक प्रचार है और पीछेके कवियोंने तो प्रायः इसी कथाको संक्षिप्त या पल्लवित करके अपने अपने ग्रन्थ लिखे हैं । फिर भी उत्तरपुराणकी कथा बिल्कुल उपेक्षित नहीं हुई है । अनेक कवियोंने उसको भी आदर्श मानकर काव्य-रचना की है। उदाहरणके लिए महाकवि पुष्पदन्तको ही ले लीजिए। उन्होंने अपने उत्तरपुराणके अन्तर्गत जो रामायण लिखी है, वह गुणभद्रकी कथाकी ही अनुकृति है। चामुण्डराय-पुराणमें भी यही कथा है।
पद्मचरिय और पद्मचरितकी कथाका अधिकांश वाल्मीकि रामायणके ढंगका है और उत्तरपुराणकी कथाका जानकी-जन्म अद्भुत रामायणके ढंगका । दशरथ बनारसके राजा थे, यह बात बौद्ध जातकसे मिलती जुलती है । उत्तरपुराणके समान उसमें भी सीता-निर्वासन, लव-कुश-जन्म आदि नहीं हैं।
अर्थात् भारतवर्ष में राम-कथाकी जो दो तीन परम्पराये हैं, वे जैन सम्प्रदायमें भी प्राचीन कालसे चली आ रही हैं । पउमचरियके कर्त्ताने कहा है कि उस पद्मचरितको मैं कहता हूँ जो आचार्योंकी परम्परासे चला आ रहा था और नामावलीनिबद्ध थी। इसका अर्थ मैं यह समझता हूँ कि रामचन्द्रका चरित्र उस समय तक केवल नामावलीके रूपमें था, अर्थात् , उसमें कथाके प्रधान-प्रधान पात्रोंके, उनके माता-पिताओं, स्थानों और भवान्तरों आदिके नाम ही होंगे, वह पल्लवित कथाके रूपमें न होगा और उसीकी विमलसूरिने विस्तृत चरितके रूपमें रचना की होगी।
श्रीधर्मसेन गणिने वसुदेव-हिंडिके दूसरे खडमें जो कुछ कहा है उससे भी यही मालूम होता है कि उनका वसुदेवचरित भी गणितानुयोगके क्रमसे निर्दिष्ट था।
१-णामावलियनिबद्धं आयरियपरंपरागयं सव्वं ।
वोच्छामि पउमचरियं अहाणुपुट्विं समासेण ॥ २ जैनाचार्योके अनेक कथा-ग्रन्थोंमें परस्पर जो असमानता है, भिन्नता है, उसका कारण भी यही मालूम होता है ।/ उनके सामने कुछ तो ' नामावलीनिबद्ध ' साहित्य था और कुछ आचार्यपरम्परासे चली आई हुई स्मृतियाँ थीं। इन दोनोंके आधारसे अपनी अपनी रुचिके अनुसार कथाको पल्लवित करने में भिन्नता हो जाना स्वाभाविक है। एक ही संक्षिप्त प्लाटको यदि आप दो लेखकोंको देंगे तो उन दोनोंकी पल्लवित रचनायें निस्सन्देह भिन्न ही जायेंगी । तिलोयपण्णत्तिमें जो करणानुयोगका ग्रन्थ है, उक्त नामावलीनिबद्ध कथासत्र दिये हुए हैं।