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जैनसाहित्य और इतिहास
'पाण्डयक्ष्मापति' लिखते हैं, कोई विशेष नाम नहीं देते । हमारी समझमें ये हस्तिमल्लके आश्रयदाता राजाके ही वंशके अनन्तरवर्ती कोई जैन राजा थे और इन्होंने ही शायद श० सं० १३५३ ( वि० सं० १४८८ ) में कार्कलकी विशाल बाहुबलि प्रतिमाकी प्रतिष्ठा कराई थी।
पाण्ड्य महीश्वरकी राजधानी मालूम नहीं कहाँ थी। अंजनापवनजयके ' श्रीमत्पाण्ड्यमहीश्वरेण' आदि पद्यसे तो ऐसा मालूम होता है कि संतरनम या संततगमै नामक स्थानमें हस्तिमल अपने कुटुम्बके सहित जा बसे थे, इस लिए यही उनकी राजधानी होगी, यद्यपि यह पता नहीं कि यह स्थान कहाँपर था । __ हाथीका मद उतारने की घटना · सरण्यापुर' नामक स्थानमें घटित हुई थी
और वहाँकी राजसभामें ही उन्हें सत्कृत किया था। इस स्थानका भी कोई पता नहीं है । या तो यह संततगमका ही दूसरा नाम होगा या फिर किसी कारणसे पाण्ड्य राजा हस्तिमल्ल के साथ कहीं गये होंगे और वहाँ यह घटना घटी होगी।
कविका मूल निवासस्थान ब्रह्मसूरिने गोविन्द भट्टका निवासस्थान गुडिपत्तन बतलाया है और पं० के० भुजबलि शास्त्रीके अनुसार यह स्थान तंजौरका दीपंगुडि नामका स्थान है, जो पाण्ड्यदेशमें है। कर्नाटकका राज्य प्राप्त होने पर या तो वे स्वयं ही या उनका कोई वंशज कर्नाटकमें आकर रहने लगा होगा और उसीकी प्रीतिसे हस्तिमल्ल कर्नाटककी राजधानीमें आ बसे होंगे। __ ब्रह्मसूरिके बतलाये हुए गुडिपत्तनका ही उल्लेख हस्तिमल्लने विक्रान्त कौरवकी प्रशस्तिमें द्वीपंगुडि नामसे किया है । उसमें भी वहाँके वृषभ जिनके मन्दिरका उल्लेख है जिनके पादपीठ या सिंहासनपर पाण्ड्य राजाके मुकुटकी प्रभा पड़ती थी। वृषभजिनके उक्त मन्दिरको ‘कुश-लवरचित ' अर्थात् रामचन्द्रके पुत्र कुश और लवके द्वारा निर्मित बतलाया है ।
१ देखो के० भुजबलिशास्त्रीद्वारा सम्पादित प्रशस्तिसंग्रह पृ० १९ ।
२ डा० ए० एन्० उपाध्येने अञ्जनापवनंजयकी दो प्रतियाँ देखकर सूचना दी है कि एक प्रतिमें ' सतगमे' और दूसरी प्रतिमें संततगभे' पाठ है । पहले पाठसे छन्दोभंग होता है, इस लिए दूसरा पाठ ठीक मालूम होता है ।