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पद्मचरित और पउमचरिय परिचय
आचार्य रविषेणका पद्मचैरित ( पद्मपुराण ) संस्कृतका बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है और उसका हिन्दी अनुवाद तो उत्तर भारत के जैनों में घर घर पढ़ा जाता है, परन्तु विमलसूरिके पउमचरियको बहुत ही कम लोग जानते हैं, क्योंकि एक तो वह प्राकृत में है और दूसरे उसका कोई अनुवाद नहीं हुआ ।
रविषेणने पद्मचरितकी रचना महावीर भगवान् के निर्वाणके १२०३ वर्ष बाद अर्थात् वि० सं० ६३४ के लगभग और विमलसूरिने वीर नि० सं० ५३० या वि० सं० ६० के लगभग की थी। इस हिसाब से पउमचरिय पद्मचरित से ४७० वर्ष पहलेकी रचना है । जिस तरह पउमचरिय प्राकृत जैन - कथा - साहित्यका सबसे प्राचीन ग्रन्थ है, उसी तरह पद्मपुराण संस्कृत जैन - कथा - साहित्यका सबसे पहला ग्रन्थ है |
विमलसूरि राहू नामक आचार्य के प्रशिष्य और विजयाचार्य के शिष्य थे । विजय नाइलकुलके थे । इसी तरह रविषेण अर्हमुनिके प्रशिष्य और लक्ष्मणसेनके शिष्य
१- माणिकचन्द्र-जैन-ग्रन्थमाला, बम्बईद्वारा प्रकाशित ।
२- जैनधर्मप्रसारक सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित ।
३ - द्विशताभ्यधिके समासहस्रे समतीतेऽर्धचतुर्थवर्षयुक्ते । जिन भास्करवर्द्धमानसिद्धे चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ॥ १८५ ॥ ४- पंचेव वाससया दुसमाए तीसवरससंजुता ।
वीरे सिद्धिमुवगए तओ निबद्धं इमं चरियं ॥ १०३॥ ५ - राहू नामायरिओ स-समय- परसमयगहियसभाओ । विजओ य तस्स सीसो नाइलकुलवंसनंदिय ॥ ११७ ॥ सीसेण तस्स रइयं राहवचरियं तु सूरिविमलेण । सोऊणं पुव्वगए नारायण - सीरि-चरियाई ॥ ११८ ॥