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नाट्यकार हस्तिमल्ल
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हस्तिमल्लका समय अय्यपार्य नामक विद्वानने अपने जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय नामक प्रतिष्ठापाठमें लिखा है कि मैंने यह ग्रन्थ वसुनन्दि, इन्द्रनन्दि, आशाधर और हस्तिमल आदिकी रचनाओंका सार लेकर लिखा है और उक्त ग्रन्थ श० सं० १२४१ (वि० सं० १३९६ ) में समाप्त हुआ था। अतएव हस्तिमल्ल १३९६ से पहले हो चुके थे। __ ब्रह्मसूरिने अपनी जो वंशपरम्परा दी है, उसके अनुसार हस्तिमल्ल उनके पितामहके पितामह थे । यदि एक एक पीढ़ीके पचीस पचीस वर्ष गिन लिये जायँ, तो हस्तिमल उनसे लगभग सौ वर्ष पहलेके हैं और पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार ब्रह्मसूरिको विक्रमकी पन्द्रहवीं शताब्दिका विद्वान् मानते हैं, अतएव हस्तिमलको विक्रमकी चौदहवीं शताब्दिका विद्वान् मानना चाहिए । __ कर्नाटक-कवि-चरित्रके कर्त्ता और० नरसिंहाचार्यने हस्तिमल्लका समय ई० सन् १२९० अर्थात् वि० सं० १३४७ निश्चित किया है, और यह ठीक मालूम होता है।
ग्रन्थ-रचना हस्तिमलके अभी तक चार नाटक प्राप्त हुए हैं— विक्रान्त-कौरव, २ भैथिली.
१ श्रीमद्दीपंगुडीशः कुश-लवचितस्थानपूज्यो वृषेशः स्याद्वादन्यायचक्रेश्वरगजवशकृद्धस्तिमल्लाह्वयेन । गद्यैः पद्यैः प्रबन्धैनवरसभरितैराहतोऽयं जिनेशः पायान्नः पादपीठस्थलविकटलसत्पाण्ड्यमौलिप्रभौघः ॥ १४ ॥ २ यश्चाशाधरहस्तिमलकथितो यश्चैकसन्धीरितः
तेभ्यस्स्वाहृतसारआर्यरचितः स्याजैनपूजाक्रमः ।। १९ ।। ३ शाकाब्देविधुवेदनेत्रहिमगे ( ? ) सिद्धार्थसंवत्सरे
माघे मासि विशुद्धपक्षदशमीपुष्यार्कवोरऽहनि । ग्रन्थो रुद्रकुमारराज्यविषये जैनेन्द्रकल्याणभाक्
सम्पूर्णोऽभवदेकशैलनगरे श्रीपालबन्धूर्जितः ।-कारंजाकी प्रति ४ देखो ग्रन्थ-परीक्षा तृतीय भाग, पृष्ठ ८ ।