________________
जैनसाहित्य और इतिहास
इसके उत्तरमें उज्जैन, पश्चिम में महाराष्ट्र, दक्षिण में आन्ध्र और कलिंग और पूर्व में उड़ीसा था | अर्थात् तापी नदी-तटके बुरहानपुर, गोदावरीके नांदेड, छत्तीसगढ़ के रतनपुर और महानदी के उद्गमस्थान नवगढ़ तक इस देशकी सीमा रही होगी । हमारे अनुमानसे कालिदास के मेघदूतका रामगिरि ही यह रामगिरि होगा । इसके आगे दण्डकारण्यका होना ठीक जान पड़ता है । कर्णरवा नदी शायद महानदी हो ।
२१२
रामगिरि माना जाता
छत्तीसगढ़ के सरगुजा स्टेटका रामगढ़ ही कालिदासका है । यह लक्ष्मणपुर गाँवसे १२ मील है । इस टेकरीपर कई गुफायें हैं और बड़े बड़े पत्थरोंसे बनाये हुए मन्दिरोंके अवशेष हैं । एक गुफा में दोहजार वर्ष पहले के
प्राचीन चित्र भी हैं ।
श्री उग्रादित्याचार्यने अपना इसी रामगिरिपर रचा था
-
८ कल्याणकारक नामक वैद्यक-ग्रन्थ भी शायद
,
वेंगीशत्रिकलिंगदेशजनन प्रस्तुत्य सानूत्कटः प्रोद्यद्वृक्षलताविताननिरतैः सिद्धैश्व विद्याधरैः । सर्वे मंदिर कंदरोपमगुहाचैत्यालयालंकृते
रम्ये रामगिराविदं विरचितं शास्त्रं हितं प्राणिनाम् ॥
इसमें रामगिरिके लिए जो विशेषण दिये हैं, गुहा-मन्दिरों और चैत्यालयों की जो बात कही है, वह भी इस रामगिरिके विषय में ठीक जान पड़ती है । उग्रादिव्यके समय भी वह सिद्ध और विद्याधरोंसे सेवित एक तीर्थ जैसा ही गिना जाता था ।
इस सब बातोंके प्रकाशमें हम इस निर्णयपर पहुँचते हैं कि कुलभूषण देशभूषण मुनिका मोक्षस्थान या तो यही रामगढ़ है या उसके आसपास कहीं महाकौशल में ही होगा ।
इस समय कुंथलगिरि निजाम-स्टटमें है और बासीं टाऊन रेल्वे स्टेशन से लगभग २१ मील दूर है । वहाँ पर मुनियों के चरण - मन्दिर के सहित दस मन्दिर हैं । दिगम्बर जैन - डिरेक्टरी के अनुसार ये दसों मंदिर वि० सं० १९३१ के बाद के बने हुए हैं । देशभूषण - कुलभूषण के मंदिरके विषय में लिखा है कि इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार ईडरके भट्टारक कनककीर्तिने सं० १९३२ में कराया था । प्राचीन मंदिरके या मूल नायककी प्रतिमाके लेखादिका कोई उल्लेख नहीं है ।