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नाट्यकार हस्तिमल्ल
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सूक्तियोंकी बहुत ही प्रशंसा की है । राजावली कथाके कर्त्ताने उन्हें उभयभाषाकवि-चक्रवर्ती लिखा है।
हस्तिमलने विक्रान्तकौरवके अन्तमें जो प्रशस्ति दी है, उसमें उन्होंने समन्तभद्र, शिवकोटि, शिवायन, वीरसेन, जिनसेन और गुणभद्रका उल्लेख करके कहा है कि उनकी शिष्य-परस्परामें असंख्य विद्वान् हुए और फिर गोविन्द भट्ट हुए जो देवागमको सुनकर सम्यग्दृष्टि हुए । परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वे उक्त मुनिपरम्पराके कोई साधु या मुनि थे। जैसी कि जैनग्रन्थकर्ताओंकी साधारण पद्धति है, उन्होंने गुरुपरम्पराका उल्लेख करके अपने पिताका परिचय दिया है।
हस्तिमल स्वय भी गृहस्थ थे । उनके पुत्र-पौत्रादिका वर्णन ब्रह्मसूरिने अपने प्रतिष्ठासारोद्धारमें किया है। स्वयं ब्रह्मसूरि भी उनके वंशमें हुए हैं । वे लिखते हैं कि पाण्डय देशमें गुडिपत्तनके शासक पाण्डय नरेन्द्र थे, जो बड़े ही धर्मात्मा, वीर, कलाकुशल और पण्डितोंका सन्मान करनेवाले थे। वहाँ वृषभ तीर्थकरका रत्न-सुवर्णजटित सुन्दर मन्दिर था, जिसमें विशाखनन्दि आदि विद्वान् मुनिगण रहते थे । गोविन्द भट्ट यहींके रहनेवाले थे । उनके श्रीकुमार आदि छह पुत्र थे। हस्तिमल्लके पुत्रका नाम पार्श्व पण्डित था जो अपने पिताके ही समान यशस्वी, धर्मात्मा और शास्त्रज्ञ थे । ये अपने वशिष्ठ काश्यपादि गोत्रज बान्धवोंके साथ होयसल देशमें जाकर रहने लगे, जिसकी राजधानी छत्रत्रयपुरी थी । पार्श्व पंडितके चन्द्रप, चन्द्रनाथ और वैजय्य नामक तीन पुत्र थे। इनमें चन्द्रनाथ अपने
१ किं वीणागुणझंकृतैः किमथवा सांड्रैर्मधुस्यन्दिभिविभ्राम्यत्सहकारकोरकशिखाकर्णावतंसैरपि । पर्याप्ताः श्रवणोत्सवाय कवितासाम्राज्यलक्ष्मीपते
सत्यं नस्तव हस्तिमल्लसुभगास्तास्ताः सदासूक्तयः ॥ -मै० क० २ कनडी आदिपुराणको पुष्पिकामें कविने स्वयं भी उभय-भाषाकविचक्रवर्ती लिखा है-" इत्युभयभाषाकविचक्रवर्तिहस्तिमल्लविरचितपूर्वपुराणमहाकथायां दशमपर्वम् । "
३ परवादिहस्तिनां सिंहो हस्तिमल्लस्तदुद्भवः ।
गृहाश्रमी बभूवार्हच्छासनादिप्रभावकः ॥ १३ ॥ ४ के० भुजबलि शास्त्रीका यह अनुमान है कि छत्रत्रयपुरी शायद द्वारसमुद्र (हलेवीडु) हो। यह होय्सल राजाओंकी राजधानी रही है।