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हमारे तीर्थक्षेत्र
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सिरेसे मरम्मत की गई है । इसमें जो मुख्य प्रतिमा है वह जीर्णोद्धार करानेवालेने सं० १९६७ में स्थापित की है। शेष दो प्रतिमायें पुरानी है । एक तो सं० १६४२ माघ सुदी ७ सोमवारको वादिभूषण गुरुके उपदेशसे प्रतिष्ठित हुई है,
और दूसरी प्रसिद्ध प्रतिमाप्रचारक जीवराज पापड़ीवालद्वारा सं० १५४८ में प्रतिष्ठा कराई हुई है । दूसरा एक मन्दिर और भी पासमें है। उसकी मरम्मत की गई है। उसमें एक काले पाषाणकी प्रतिमा है। वह सं० १६६२ की है । वादिभूषण भट्टारकने उसकी भी प्रतिष्ठा कराई थी। प्रतिष्ठा करानेवाले अहमदाबादके एक हूमड़ श्रावक थे । पर्वतपर सब मिलाकर १० जीर्ण मन्दिर हैं, इनमेंसे तीनका तो जीर्णोद्धार हो गया है और एककी मरम्मत की गई है। शिखर बाकी है । तीसरा-चौथा मन्दिर दाहिनी तरफ धराशायी हो रहा है । इसे हमने भीतर घुसकर देखा तो मालूम हुआ कि गर्भालयकी दो चौखटोपर तो गणेशकी मूर्तियाँ हैं
और उत्तर तरफकी बाहरी दीवालपर जो तीन मूर्तियाँ हैं वे श्वेताम्बर सम्प्रदायकी हैं । उनकी भुजाओंमें बाजू-बन्द और हाथोंमें कंकण हैं । आसनमें हाथीका चित्र है । इसके आगे एक विराट मन्दिर धराशायी हो रहा है । इसमें नन्दीश्वरद्वीपके समान चारों ओर ५२ जिनालय थे । इसी जगह सेठ चुन्नीलाल हेमचन्द्र जरीवालेने मान्दर बनाकर वीर नि० सं० २४३७ में प्रतिष्ठा कराई है। आगे बड़े मन्दिरके सामने एक छोटी-सी देहरी है । यह अभी हाल ही बनी है । इसमे जो चरण हैं उनकी स्थापना सं० १९६७ में हुई है। इस देहरीकी पीठपर कहींका एक पुराना पड़ा हुआ पत्थर जड़ दिया गया है जिसमें ऋद्धि-सिद्धि-युक्त गणेशजीकी मूर्ति है । बड़े मन्दिरमें बड़ी प्रतिमा और छोटी-छोटी प्रतिमाएँ परंढा ( सोलापुर) निवासी शेठ गणेश गिरिधरकी हैं और तीन जो पुरानी हैं वे क्रमसे १६४५, १६६५, और १९६९ की हैं । यह मंदिर बहुत विस्तारमें था और प्राचीन मालूम होता है । मरम्मत केवल बीचके भागकी कर ली गई है । इसके पास ही दो मन्दिर और थे जिनमेंसे एकका तो मकान-सा बना लिया गया है। इस समय उसमें पर्वतके मन्दिरोंकी पूजा करनेवाले पुजारी रहते हैं । और एक बिल्कुल नामशेष है—दालान यों ही पड़ी है । मन्दिरके पास ही तालाब है।
“ यहाँसे कालिकाकी टोकपर चढ़ना होता है । इसकी सीढ़ियों में जो पत्थर लगाया गया है वह पहाड़ परसे ही संग्रह किया गया है । यह देखकर हमें खेद हुआ कि इन सीढ़ियोंमें मामूली पत्थर समझकर छह-सात जैन मूर्तियाँ लगा दी