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जैनसाहित्य और इतिहास
पूर्वोक्त पट्टावली में और काष्ठासंघकी पट्टावली में यशोबाहुके स्थान में भद्रबाहु नाम है । जान पड़ता है नन्दिका पूरा नाम विष्णुनन्दि होगा और वही कहीं नन्दि और कहीं विष्णुरूपमें लिख दिया गया है । इसी तरह यशोबाहुका नामान्तर भद्रबाहु होगा ।
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लोहाचार्य तककी यह गुरुपरम्परा दिगम्बर संप्रदाय में एक-सी मानी जाती है । इसमें कोई मतभेद नहीं है । परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय में जम्बूस्वामी के बाद जो परम्परा मानी जाती है, वह इससे सर्वथा भिन्न है ।
जंबुदीवपणत्तिका आदि और अंतका कुछ भाग नीचे दिया जाता हैदेवासुरिंदमहिदे दसद्धरूण कम्मपरिहीणे । केवलणाणालोए सद्धम्मुवएस अरुहे || १ अविकम्मरहिए अट्टगुणसमणिदे महावीरे | लोयग्गतिलयभूदे सासयहसंदेि सिद्धे || २ || पंचाचारसमग्गे पंचेंद्रियाणिज्जिदे विगहमोहे | पंचमहव्वयणिलए पंचमगइणायणायरिए || ३ ॥ परसमय तिमिरदलणे परमागमदेसए उवज्झाए । परमगुणरयणणिवहे परमागमभाविदे वीरे ॥ ४ ॥ णाणागुणतवणिरए ससमयसम्भावगाहियपरमत्थे । बहुविजोगज्जुते जे लोए सव्व साहुगणे ॥ ५ ॥ ते वंदिऊण सिरसा वोच्छामि जहाकमेण जिणदिहं । आयरियपरंपरा पणत्तिं दीवजलधीणं ॥ ६ ॥
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विउलगिरितुंगसिहरे जिनिंदईदेण वड्ढमाणेण । गोदमणिस्स कहिदं पमाणणयसंजुदं अत्थं ॥ ९ ॥ तेण वि लोहजस्स य लोहजेण य सुधम्मणामेण । गणधरसुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिहं ॥ १० ॥ चदुर मलबुद्धिसहिदे तिने गणधेर गुणसमग्गे । केवलणाणपईवे सिद्धिं पत्ते णमंसामि ॥ ११ ॥ गंदी य दिमित्तो अवराजिदमुणिवरो महातेओ । गोवणो महप्पा महागुणो भद्दबाहू य || १२ ||