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जैनसाहित्य और इतिहास
होकर खंभाततक जाता है और उत्तर भाग जो अर्बलीकी पर्वतश्रेणीतक गया है पारियात्र कहलाता है । अतः पूर्वोक्त बारानगर इसी भूभागके अन्तर्गत होना चाहिए । राजपूतानेके कोटा राज्यमें एक बारा नामका कसबा है । जान पड़ता है कि वही बारानगर होगा। क्योंकि वह पारियात्र देशकी सीमाके भीतर ही आता है। नन्दिसंघकी पट्टावलीके अनुसार बारामें एक भट्टारकोंकी गद्दी भी रही है और उसमें वि० सं० ११४४ से १२०६ तकके १२ आचार्यों के नाम दिये हैं। इससे भी जान पड़ता है कि सम्भवतः ये सब आचार्य पद्मनन्दि या माघनन्दिकी ही शिष्यपरम्परामें हुए होंगे और यही बारा ( कोटा) जम्बूदीपप्रज्ञप्तिक निर्मित होनेका स्थान होगा।
ज्ञानप्रबोध नामक पद्यबद्ध भाषाग्रन्थमें कुन्दकुन्दाचार्यकी एक कथा दी है । उसमें कुन्दकुन्दको इसी बारापुर या बाराके धनी कुन्दश्रेष्ठी और कुन्दलताका पुत्र बतलाया है। पाटकोंसे यह बात अज्ञात न होगी कि कुन्दकुन्दका एक नाम पद्मनन्दि भी है । जान पड़ता है कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिके कर्ता पद्मनन्दिको ही भ्रमवश कुन्दकुन्दाचार्य समझकर ज्ञानप्रबोधके कर्ता कर्नाटक देशके कुन्दकुन्दका जन्म-स्थान बारी बतला बैठे हैं । पर इससे यह बात बहुत कुछ निश्चित हो जाती है कि कोटा राज्यके इसी बारामें यह ग्रन्थ निर्मित हुआ है। ___ शान्ति या शक्ति राजाको नरपतिसंपूजित लिखा है, और साथ ही 'बारानगरस्य प्रभुः' कहा है। परन्तु उसका वंश आदि नहीं बतलाया है, जिससे राजगृतानेके इतिहासमें कुछ पता लगाया जा सके और उससे पद्मनन्दि आचार्यका निश्चित समय मालूम किया जा सके ।
पद्मनन्दिने अपने संघ, गण, अन्वय आदिका कोई उल्लेख नहीं किया, इससे भी उनका समय निर्णय करना कठिन हो गया है । इस विषयमें उनकी गुरुपरम्परा और श्रीनन्दिकी गुरुपरम्परा भी --- जिनके निमित्त यह ग्रन्थ बनाया गया--हमें कोई सहायता नहीं देती । पद्मनन्दि नामके अनेक आचार्य हो गये हैं परन्तु उनमें ऐसा कोई नहीं जान पड़ता जिसके गुरु बलनन्दि और प्रगुरु वीरनन्दि हों। इसी तरह श्रीनन्दि भी ऐसे कोई नहीं मिले जिनके गुरु सकलचन्द्र और १ देखी जैनसिद्धान्तभास्कर किरण ४ और इंडियन एण्टिक्वेरीकी २० वीं जिल्द । २ सुना है कि बारामें पद्मनन्दिकी कोई निषिद्या भी है।