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दक्षिणके तीर्थक्षेत्र
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इस लेख में मैं ऐसे ही एक यात्रा-वर्णनका परिचय दिया जाता है । तीर्थक्षेत्र ' नामक लेख में एक दो जगह तीर्थमाला' नामकी एक पुस्तक से कुछ प्रमाण दिये गये हैं । उसके कर्ता श्री शीलविजयजी श्वेताम्बर सम्प्रदाय के तपागच्छीय संवेगी साधु थे और उनके गुरुका नाम पं० शिवविजयजी था । उन्होंने पश्चिम, पूर्व, दक्षिण और उत्तर चारों दिशाओंके तीर्थों की पैदल यात्रा की थी और जो कुछ उन्होंने देखा सुना था उसे अपनी गुजराती भाषा में पद्यबद्ध कर दिया था । इसके पहले भाग में ८५, दूसरे में ५५, तीसरे में १७३ और चौथे में ५५ पद्य हैं । प्रत्येक भागके प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूपमें दो दो तीन तीन दोहे और अन्त में चार चार लाइनोंका एक एक , कलस है । शेष
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सब चौपाइयाँ हैं ।
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पूर्व तीर्थोंकी यात्रा उन्होंने वि० सं० १७११-१२ में, दक्षिणकी १७३१३२ में, पश्चिमकी १७४६ में और उत्तरकी शायद १७४८ में की थी ।
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शायद ' इस लिए कि पुस्तकके पद्य-भाग में संवत् नहीं दिया है, परन्तु अन्तकी पुष्पिकामें लिखा है- संवत् १७४८ वरप्रे मागसरमासे शुक्लपक्षे त्रयोदशी तिथौ सोमवासर लिखितम्
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स्व० श्रीधर्मविजयसूरिने वि० सं० नामका एक संग्रह प्रकाशित किया था हुई छोटी-बड़ी पच्चीस तीर्थमालायें हैं । संग्रहीत है ।
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१९७८ में ' प्राचीन तीर्थमाला-संग्रह । उसमें भिन्न-भिन्न यात्रियों की लिखी शीलविजयजीकी तीर्थमाला भी उसीमें
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यों तो यह समस्त पुस्तक ही बड़े महत्त्वकी है, परन्तु हम इसकी दक्षिणयात्रा के अंशका ही विवरण पाठकों के सामने उपस्थित करेंगे । क्योंकि यह अंश दिगम्बर सम्प्रदायके पाठकोंके लिए अधिक उपयोगी है | अबसे लगभग ढाई सौ वर्ष पहलेके दक्षिणके तीर्थों और दूसरे धर्म स्थानोंके सम्बन्ध में इससे बहुत-सी बातें मालूम होंगीं ।
स्वयं श्वेताम्बर होने पर भी लेखकने दक्षिण के समस्त दिगम्बर - सम्प्रदाय के तीर्थोंका श्रद्धा-भक्तिपूर्वक वर्णन किया है और उनकी वन्दना की है ।
१ यह लेखककी लिखी या लिखाई हुई पहली ही प्रति मालूम होती है और उक्त प्रति ही प्रकाशनके समय सम्पादकके सामने आदर्श प्रति थी ।
२ श्रीयशोविजय - जैन ग्रंथमाला, भावनगर द्वारा प्रकाशित | मूल्य २ || )
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