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जैनसाहित्य और इतिहास
आगे करहिडा और कलिकुंड पार्श्वनाथके विषयमें लिखा है कि उनकी महिमा आज भी अखंड है । दिवालीके दिन ब्रह्मादिक सारे देव आकर प्रणाम करते हैं ! ___ इसके बाद कुछ स्थानोंके नाम-मात्र दिये हैं-चारणगिरि, नवनिधि', रायबाग, हुकेरी। इस तरफ पंचम, वणिक, छीपी", कंसार, वणकरें और चतुर्थ जातिके श्रावक हैं । ये सभी दिगम्बरी हैं, पर एक साथ भोजन नहीं करते । शिवाजीके मराठा राज्यके अधीन हैं । तुलजा देवीकी सेवा करनेवाले लोग बहुत हैं ।
फिर स्याहगढ़, मूगी पईठाणके नाम मात्र हैं । पईठाणमें वाण गंगाके किनारे जीवित स्वामी मुनिसुव्रतकी प्रतिमा प्रकट हुई । यहाँ सिद्धसेन दिवाकर और हरिभद्रसूरि हुए । कविजनोंकी माता भारती भद्रकाली देवी दीपती हैं ।
आगे किसनेर, दौलताबाद, देवगिरि, औरङ्गाबादके नाम मात्र देकर इलोरिके विषयमें लिखा है कि देखकर हृदय उल्लसित हो गया । इसे विश्वकर्माने बनाया है। फिर इमदानगरि, नासिक, व्यंबक, और तुङ्गगिरिका उल्लेखमात्र करके दक्षिण यात्रा समाप्त कर दी है "
'दष्यिण दिसिनी बोली कथा, निसुणी दीठी जे मि यथा ।'
१-जान पड़ता हैं 'नवनिधि ' पाठ भूलसे छप गया है । 'तवनिधि' होगा। यह स्तवनिधि तीर्थ है जो बेलगाँवसे ३८ और निपाणीसे ३ मील है । द० म० जैनसभाके जल्से अक्सर यहीं होते हैं । २-कोल्हापुर राज्यके एक जिलेका सदर मुकाम । ३-बेलगाँव जिलेकी चिकोडी तहसीलका एक कस्बा । ४-शिंपी या दीं। ५ बुननेवाले।
६ शोलापुरसे २८ मीलकी दूरीपर तुलजापुर नामका कस्बा है, उसके पास पहाड़की तलैटीमें तुलजादेवीका मन्दिर है । वहाँ हर साल बडा भारी मेला लगता है ।
७ प्राचीन प्रतिष्ठानपुर और वर्तमान पैठण निजाम राज्यके औरङ्गाबाद जिलेकी एक तहसील है । विविध तीर्थकल्पके अनुसार यहाँ ' जीवंतसामि मुणिसुन्वय ' की प्रतिमा थी। ८ औरङ्गाबादके पासका ‘कचनेर ' नामका अतिक्षय क्षेत्र । ९ एलोर या एलोराके गुफा. मन्दिर । १० अहमदनगर।
११ पं० के० भुजवलि शास्त्रीने इस लेखके कई स्थानोंका पता लगाने में सहायता देनेकी कृपा की है।