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जैनसाहित्य और इतिहास
विनुरिसे फिर हुंबैसि आये, जहाँ पार्श्वनाथ और पद्मावती देवी है । वहाँ आसपास अनेक सर्प फिरते रहते हैं पर किसीका पराभव नहीं करते । ऐसे महिमाधाम और वांछित काम स्थानकी पूजा की।
फिर लिखा है कि चित्रगढ़, बनोसीगाँव और पवित्र स्थान बंकापुर देखा, जो मनोहर और विस्मयवन्त तीर्थ है
चित्रगढ़ बनोसी गाम, बंकापुर दीटुं सुभधाम ।
तीरथ मनोहर विस्मयवन्त,...... आगे यात्रीजीने लक्ष्मेश्वरपुर तीर्थकी एक अपूर्व बात इस तरह लिखी है
१ हूमच पद्मावती तीर्थ शिमोगा जिलेमें है और तीर्थलीसे १८ मील दूर है। यहाँ भट्टारककी गद्दी है । यह जैनमठ आठवीं शताब्दीके लगभग स्थापित हुआ बताया जाता है। इस मठके अधिकारी बड़े बड़े विद्वान् हो गये हैं। पद्मावतीदेवीकी बहुत महिमा बतलाई जाती है।
२-मैसूर राज्यके उत्तर में चित्तलदुर्ग नामका एक जिला है। चित्रगढ शायद यही होगा। यहाँ होय्साल राजवंशकी राजधानी रही है। गढ़ और दुर्ग पर्यायवाची हैं, इसलिए चित्तलदुर्गको चित्तलगढ या चित्रगढ़ कहा जा सकता है। __ ३-बनौसी शायद वनवासीका अपभ्रंश हो । उत्तर कनाड़ा जिलेकी पूर्व सीमापर वनवासी नामका एक गाँव है । इस समय इसकी जनसंख्या दो हजारके लगभग है । परन्तु पूर्वकालमें बहुत बड़ा नगर था और वनवास देशकी राजधानी था । १३ वीं शताब्दी तक यहाँ कदम्ब-वंशकी राजधानी रही है। यहाँके एक जैनमन्दिरमें दूसरीसे बारहवीं शताब्दी तकके शिलालेख है।
४ धारबाड जिलेका एक कस्बा है। भगवद्गुणभद्राचार्यने अपना उत्तरपुराण इसी बंकापुरमें समाप्त किया था। उस समय यह बनवास देशकी राजधानी था और राष्ट्रकूट नरेश अकालवर्षका सामन्त लोकादित्य यहाँ राज्य करता था । राष्ट्रकूट महाराज अमोघवर्ष ( ८५१-६९ ) के सामन्त ' बंकेयेरस ' ने इसे अपने नामसे बसाया था।
५ लक्ष्मेश्वर धारवाड जिलेमें मिरजके पटवर्धनकी जागीरका एक गाँव है। इसका प्राचीन नाम ‘पुलिगेरे' है । यहाँ ' शंख-बस्ति' नामका एक विशाल जैनमन्दिर है जिसकी छत ३६ खम्भोंपर थमी हुई है । यात्रीने इसीको ‘शंख परमेश्वर' कहा जान पड़ता है। इस शंखवस्तिमें छह शिलालेख प्राप्त हुए हैं । शक संवत् ६५६ के लेखके अनुसार चालुक्य-नरेश विक्रमादित्य (द्वितीय) ने पुलिगेरेकी शंखतीर्थ वस्तीका जीर्णोद्धार कराया