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दक्षिणके तीर्थक्षेत्र
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स्वामीके सेवकने अर्थात् किसी यक्षने श्रावकोंसे कहा कि नौ दिन तक एक शङ्खको फूलोंमें रक्खो और फिर दसवें दिन दर्शन करो । इस पर श्रावकोंने नौ दिन ऐसा ही किया और नवें दिन ही उसे देख लिया और तब उन्होंने शङ्खको प्रतिमारूपमें परिवर्तित पाया परन्तु प्रतिमाके पैर शंखरूप ही रह गये, अर्थात् यह दश दिनकी निशानी रह गई । शंखमेसे नेमिनाथ प्रभु प्रकट हुए
और इस प्रकार वे 'शंख परमेश्वर' कहलाये । ___ इसके बाद शीलविजयजी गदकि' रायहुबली', और रामरायके लोकप्रसिद्ध बीजानगरमें होते हुए ही बीजापुर आते हैं । बीजापुरमें शान्ति जिनेन्द्र और पद्मावतीके दर्शन किये । यहाँके श्रावक बहुत धनी गुणी और मणियोंके व्यापारी हैं । ईदलशाहको बलवान् राज्य है, जो बड़ा प्रजा-पालक है और जिसकी सेनामें दो लाख सिपाही हैं। और जिनपूजाके लिए भूमि दान की। इससे मालूम होता है कि उक्त बस्ति इससे भी प्राचीन है । हमारा अनुमान है कि अतिशय क्षेत्रकाण्डमें कहे हुए शंखदेवका स्थान यही है
पासं सिरपुरि बंदमि होलगिरी संखदेवम्मि । जान पड़ता है कि लेखकोंकी अज्ञानतासे ' पुलिगेरि' ही किसी तरह ' होलगिरि ' हो गया है । उक्त पंक्तिके पूर्वार्धका सिरपुर ( श्रीपुर ) भी इसी धारवाड़ जिलेका शिरूर गाँव है जहाँका शक संवत् ७८७ का एक शिलालेख ( इंडियन ए० भाग १२, पृ० २१६ ) प्रकाशित हुआ है । स्वामी विद्यानन्दका श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र संभवतः इसी श्रीपुरके पार्श्वनाथको लक्ष्य करके रचा गया होगा।
१-धारवाड जिलेकी गदग तहसील । २-हुबली जिला बेलगाँव ।
३-४ विजयनगरका साम्राज्य तालीकोटकी लड़ाई में सन् १५६५ में मुसलमानों द्वारा नष्ट हो गया और रामरायका वध किया गया। यह वहाँका अन्तिम हिन्दू राजा था। इसके समयमें यह साम्राज्य उन्नतिके शिखरपर या । यात्रीके समयके कुछ बरसों बाद पेद्दा विजय रामरायने पोतनूरसे राजधानी हटाकर विजयनगरमें स्थापित की थी।
५-सन् १६८३ के लगभग जब शीलविजयजीने यह यात्रा की थी, बीजापुरकी आदिलशाही दुर्दशाग्रस्त थी। उस समय अली आदिलशाह (द्वि० ) का बेटा सिकन्दर आदिलशाह बादशाह था। औरङ्गजेबकी चढ़ाईयाँ हो रही थीं । १६८४ में शाहजादा आजमशाहको उसने बीजापुरकी चढाईपर भेजा था। १६८६ में सिकन्दर कैद हो गया और १६८९ में उसकी मृत्यु हो गई।