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दक्षिणके तीर्थक्षेत्र
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चिन्तामणि चैत्यमें प्रतिदिन जिनपूजा और संघ-वात्सल्य करते हैं । उनकी ओरसे सदावर्त है। वे दीन-दुखियोंके लिए कल्पवृक्ष हैं। राजा उन्हें मानते हैं । 'उदयकरण' और ' आसकरण' सहित वे तीन भाई हैं-सम्यक्त्वी , निर्मलबुद्धि, गवरहित और गुरुभक्त । उनके गुरु अंचल गच्छके हैं । वहाँ आदिनाथ और पार्श्वनाथके दो मन्दिर हैं । एक दिगम्बर मन्दिर बहुत बड़ा है ।
इसके आगे लिखा है कि कुलपाकपुर-मंडन माणिक-स्वामीकी सेवा करनी चाहिए । वहाँकी प्रतिमा भरतरायकी स्थापित की हुई है। इस तीर्थका उद्धार राजा शंकररायकी रानीने किया है। इस मिथ्याती राजाने ३६० शिवमन्दिर बनवाये और इसकी रानीने इतने ही जिनमन्दिर । इन मन्दिरोंका विस्तार एक कोसका है, जहाँ पूजन-महोत्सव हुआ करते हैं। __ इसके आगे द्रविड़ देशका प्रारम्भ हुआ है जिसके गंजीकोट, सिकाकोलि और और चजी चोउरि स्थानोंके नाम दिये हैं जिनमें सोने, चाँदी और रत्नोंकी अनेक प्रतिमायें हैं।
आगे जिनकांची, शिवकांची और विष्णुकांचीका उल्लेख है जिनमेंसे जिनकांचीके विषयमें बतलाया है कि वहाँ स्वर्गापम जैनमन्दिर हैं और शिवकांचीमें बहुतसे शिवालय तथा विष्णुकांचीमें विष्णुमन्दिर हैं जहाँ पूजा, रथयात्रायें होती रहती हैं । - इसके बाद कर्नाटक देशका वर्णन है जहाँ चोरोंका संचरण नहीं है । काबेरी नदीके मध्य श्रीरंगपट्टण बसा हुआ है । वहाँ नाभिमल्हार ( ऋषभदेव ),
१ कुल्पाक या माणिकस्वामी तीर्थ निजाम स्टेटमें सिकन्दराबादके पास हैं । वहाँ बहुतसे शिलालेख मिले हैं । दिगम्बर जैन डिरेक्टरीके अनुसार गजपन्थमें संवत् १४४१ का एक शिलालेख था जिसमें 'हंसराजकी माता गोदूबाईने माणिकस्वामीका दर्शन करके अपना जन्म सफल किया ' लिखा है । पर अब इस लेखका पता नहीं है।
२ गंजीकोटि शायद मद्रास इलाकेके कडाप्पा जिलेका गंडिकोट है जिसे बोमनपल्लेके राजा कप्पने बसाया था और एक किला बनवाया था। फरिश्ताके अनुसार यह किला सन् १५८९ में बना था। विजयनगरके राजा हरिहरने यहाँ एक मन्दिर बनवाया था ।
३ सिकाकोलि गंजाम जिलेकी चिकाकोल तहसील है। ४ चंजी कुछ समझमें नहीं आया। ५ चंजाउरि तंजौर है ।