________________
हमारे तीर्थक्षेत्र
२०७
'तीर्थमाला' में नर्मदाके पासके तमाम जैन-अजैन तीर्थोका वर्णन लिखा है । पहले शैवोंके मान्धाताका वर्णन करके, जो वर्तमान सिद्धवरकूटसे बहुत ही पास है, वे खंडवा और बुरहानपुरकी तरफ चले जाते हैं, खंडवाके दिगम्बर जैनोंका वर्णन भी करते हैं परन्तु इस क्षेत्रका जिक्र तक नहीं करते। इससे मालूम होता है कि उस समय इस तीर्थका अस्तित्व न था। संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें भी इस तीर्थका नाम नहीं है।
चूलगिरि वडवाणीवरणयरे दक्खिणभायम्मि चूलगिरिसहरे। इंदाजयकुंभयण्णो णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ १२ अर्थात् बड़वानी नगरसे दक्षिणकी ओर चूलगिरि-शिखरसे इन्द्रजीत-कुंभकर्णादि मुनि मोक्ष गये।
वर्तमानमें बड़वानी नगर मऊ स्टेशनसे लगभग ९० मील है और एक छोटी-सी रियासतकी राजधानी है । दि० जैन डिरेक्टरीके अनुसार चूलगिरिमें २२ मन्दिर हैं । मन्दिरोंके जीर्णोद्धारका समय वि० सं० १२३३, १३८० और १५८० है । प्रतिष्ठाचार्योंके नाम नन्दकीर्ति और रामचन्द्र हैं । एक अत्यन्त विशाल प्रतिमाके कारण इस तीर्थको 'बावन-गजा' कहने लगे हैं।
दि. जैन डिरेक्टरीमें लिखा है कि 'बड़वानी ' नाम पुराना नहीं है । लगभग ४०० वर्ष पहले इसका नाम सिद्धनगर था; पीछे किसी समय बड़वानी हुआ होगा । वहाँकी रंगाराकी बावड़ीके एक लेखसे ऐसा ही मालूम होता है । परन्तु हमारी समझमें बड़वानी नाम चार सौ वर्षसे तो अधिक पुराना है, क्योंकि निर्वाण-काण्डकी रचनाका ठीक समय निश्चित न होनेपर भी वह छह-सात सौ वर्षसे कम पुराना तो हो ही नहीं सकता है। हाँ, सम्भव है कि सिद्धनगर बड़वानीके ही आसपास कहीं हो और वहीं सिद्धवरकूट भी रहा हो।
श्रीरविषेणाचार्यके पद्मचरितके ७८ वें पर्वमें यह तो लिखा है कि इन्द्रजीतमेघनाद आदिने लंकामें ही दीक्षा ली थी परन्तु उसमें निर्वाण-स्थानका उल्लेख नहीं है । उत्तरपुराणमें भी इन्द्रजीत आदिका मोक्ष-स्थान नहीं बतलाया है परन्तु सुग्रीव, हनुमान, बिभीषण आदिके साथ रामचन्द्रका निर्वाण-स्थल सम्मेदशिखर लिखा है । यदि 'आदि' शब्दसे इन्द्रजीत आदिका भी ग्रहण किया जाय तो फिर उनका मक्ति-स्थान सम्मेदशिखर होना चाहिए।