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जैनसाहित्य और इतिहास
द्रोणगिरि फलहोडीवरगामे पच्छिमभायम्मि दोणगिरिसिहरे।
गुरुदत्ताइमुणिंदा णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ १४ अर्थात् फलहोड़ी ग्रामके पश्चिम भागमें जो द्रोणगिरि-शिखर है उसपरसे गुरुदत्तादि मुनि मोक्षको गये ।।
इस समय बुन्देलखण्डकी बिजावर रियासतके सेंदपा गाँवके समीपका पर्वत द्रोणगिरि सिद्धक्षेत्र माना जाता है । सैदपा ग्राममें एक मन्दिर और द्रोणगिरिपर २४ मन्दिर हैं । मूलनायक आदिनाथकी प्रतिमा संवत् १५४९ की प्रतिष्ठा की हुई है। शेष मन्दिर और प्रतिमायें आधुनिक हैं । पासमें कोई फलहोडी नामका ग्राम नहीं है और न कोई ऐसा प्राचीन लेख ही है जिसमें द्रोणगिरिका उल्लेख हो ।
श्वेताम्बर-सम्प्रदायका एक प्रसिद्ध तीर्थ जोधपुर रियासतमें मेड़ताके पास फलहोड़ी या फलोधी नामका है जिसका वर्णन श्रीजिनप्रभसूरिके विविध तीर्थकल्पमें (वि० १३६४-८९) इस प्रकार किया गया है-" अत्थि सवालक्खदेसे मेडतयनगरसमीवठिओ वीरभवणाइनाणाविहदेवालयाहिरामो फलबद्धीनामगामे तत्थ फलवद्धिनामाधिजाए देवीए भवणमुत्तुंगसिहरं चिढइ ।” सन्देह होता है कि कहीं उक्त फलोधी ही किसी समय दिगम्बर-तीर्थ न रहा हो ।
मेढगिरि अञ्चलपुरवरणयरे ईसाणे भाए मेढगिरिसिहरे ।
आहुठ्ठयकोडीओ णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ १६ अर्थात् अचलपुर नगरके ईशान भागमें मेढगिरि-शिखरसे साढ़े तीन करोड़ मुनियोंका मोक्ष हुआ। मेढगिरि मेध्यगिरिका अपभ्रंश मालूम होता है । मेध्य शब्दका अर्थ पवित्र है । बौद्धधर्मके ' उपालिसुत्त' ( बुद्धचर्या पृष्ठ ४४९ ) में दण्डकारण्य, कलिंगारण्य, मेध्यारण्य और मातंगारण्यका उल्लेख आया है। आश्चर्य नहीं जो मेध्यारण्य और मेढांगरि एक ही हों।
१ श्रीपन्नालाल-सरस्वती-भवनके गुटकेमें यह गाथा नहीं है ।