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पण्डितवर आशाधर
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राजमान्य कुलमें उनका जन्म हुआ था और शायद इसीलिए बाल-सरस्वती मदनोपाध्याय जैसे लोगोंने उनका शिष्यत्व स्वीकार करनेमें संकोच न किया।
वि० सं० १२४९ के लगभग जब शहाबुद्दीन गोरीने पृथ्वीराजको कैद करके दिल्लीको अपनी राजधानी बनाया था और अजमेरपर भी अधिकार कर लिया था, तभी पण्डित आशाधर मांडलगढ़ छोड़कर धारामें आये होंगे। उस समय वे किशोर ही होंगे, क्योंकि उन्होंने व्याकरण और न्याय-शास्त्र वहीं आकर पढ़ा था। यदि उस समय उनकी उम्र १५-१६ वर्षकी रही हो तो उनका जन्म वि० स० १२३५ के आसपास हुआ होगा। उनका अन्तिम उपलब्ध ग्रंथ (अनगारधर्मामृतटीका) वि० स० १३०० का है। उसके बाद वे कबतक जीवित रहे, यह पता नहीं। फिर भी निदान ६५ वर्षकी उम्र तो उन्होंने अवश्य पाई और उनके पिता तो उनसे भी अधिक दीर्घजीवी रहे । अपने समयमें उन्होंने धाराके सिंहासनपर पाँच राजाओंको देखा
समकालीन राजा १ विन्ध्यवर्मा-जिस समयमें वे धारामें आये उस समय यही राजा थे। ये बड़े वीर और विद्यारसिक थे । कुछ विद्वानोंने इनका समय वि० सं० १२१७ से १२३७ तक माना है। परन्तु हमारी समझमें वे १२४९ तक अवश्य ही राज्यासीन रहे हैं जब कि शहाबुद्दीन गोरीके आक्रमणोंसे त्रस्त होकर पण्डित आशाधरका परिवार धारामें आया था। अपनी प्रशस्तिमें इसका उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया है।
२ सुभटवर्मा-यह विन्ध्यवर्माका पुत्र था और बड़ा वीर था। इसे सोहड़ भी कहते हैं । इसका राज्यकाल वि० स० १२३७ से १२६७ तक माना जाता है । परन्तु वह १२४९ के बाद १२६७ तक होना चाहिए । पण्डित आशाधरके उपलब्ध ग्रन्थोंमें इस राजाका कोई उल्लेख नहीं है ।
३ अर्जुनवर्मा--यह सुभटवर्माका पुत्र था और बड़ा विद्वान् , कवि और गान-विद्यामें निपुण था। 'अमरुशतक' पर इसकी 'रससंजीविनी' नामकी टीका बहुत प्रसिद्ध है जो कि इसके पांडित्य और काव्यमर्मज्ञताको प्रकट करती है । इसीके समयमें महाकवि मदनकी 'पारिजातमंजरी' नाटिका वसन्तोत्सवके मौकेपर खेली गई थी। इसीके राज्य-कालमें पं० आशाधर नालछामें जाकर रहे