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नयचक्र और देवसेनसूरि
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दर्शनसारकी वचनिकाके कर्ता पं० शिवजीलालजीने देवसेनसूरिके बनाये जिन सब ग्रन्थोके नाम दिये हैं उनमें प्राकृत नयचक्र भी है। अर्थात् उनके मतसे भी यह देवसेनकी ही कृति है।
यह नयचक्र ( लघु ) बृहत् नयचक्र (द्रव्यस्वभावप्रकाश) मेंसे छाँटकर जुदा निकाला हुआ नहीं है। यह बात इस ग्रन्थको आदिसे अंततक अच्छी तरह पढ़ जानेसे ही ध्यानमें आ जाती है। इसकी रचना-पद्धतिसे ही मालूम हो जाता है कि यह सम्पूर्ण ग्रन्थ है और स्वतंत्र है । नयोंको छोड़कर इसमें अन्य विषयोंका विचार भी नहीं किया गया है । इसके अंतकी नं० ८६ और ८७ की गाथाओंके 'लवण व एस भणियं नयचकं सयलसत्थसुद्धियरं' और 'तो णा, कुणह मई नयचक्के दुणयतिमिरमत्तंडे ' पदोंसे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि इसका नाम नयचक्र ही है, उसके साथ कोई ‘लघु' आदि विशेषण नहीं है।
३ बृहत् नयचक्र । इसका वास्तविक नाम ' व्वसहावपयास' (द्रव्यस्वभाव-प्रकाश ) या 'द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र' है । ग्रन्थकर्ताने स्वयं इस नामको ग्रन्थके प्रारम्भमें और अन्तमें कई जगह व्यक्त किया है । नयचक्र नाम हो भी नहीं सकता, क्योंकि नयोंके अतिरिक्त द्रव्य, गुण, पर्याय, दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि अन्य अनेक विषयोंका भी इसमें वर्णन किया गया है । यह एक संग्रह-ग्रन्थ है । जिस तरह इसमें भगवत्कुंदकुंदाचार्यकृत पंचास्तिकाय, प्रवचनसार
आदिकी गाथाओंको और उनके अभिप्रायोको संग्रह किया गया है, उसी तरह लगभग पूरे नयचक्रको भी इसमें शामिल कर लिया गया है; यहाँ तक कि मंगलाचरणकी और अंतकी नयचक्रकी प्रशंसासूचक गाथायें भी नहीं छोड़ी हैं। जान पड़ता है कि नयचक्रकी उक्त प्रशंसासूचक गाथाओंके कारण ही लोगोंको भ्रम हो गया है और वे इसे 'बृहत् नयचक्र' कहने लगे हैं। ___ इसके प्रारम्भकी उत्थानिकामें लिखा है, " श्रीकुंदकुंदाचार्यकृतशास्त्राणां सारार्थ परिगृह्य स्वपरोपकाराय द्रव्यस्वभावप्रकाशकं नयचक्रं मोक्षमार्ग कुर्वन् गाथाकर्ता. इष्टदेवताविशेषं नमस्कुर्वन्नाह-" इसमें 'द्रव्यस्वभावप्रकाशक' यह नयचक्रका विशेषण है । संग्रहकर्ताका इससे यह अभिप्राय भी हो सकता है कि यह नयचक्रयुक्त द्रव्यस्वभावप्रकाशक ग्रन्थ है ।
१ बम्बईवाली प्राचीन प्रतिमें यहाँ ' गाथाकर्ता ' ही पाठ है, जब कि मोरेनाकी । ' ग्रन्थकर्ता ' है। वास्तवमें गाथाकर्ता ही होना चाहिए। यही पाठ छपना भी चाहिए थामें