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नयचक्र और देवसेनसूरि
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इसका खुलासा इस ग्रन्थकी उत्थानिकासे भी हो जाता है, जहाँ लिखा है कि गाथाकर्ता ( ग्रन्थकर्ता नहीं ) इष्टदेवताको नमस्कार करते हुए कहते हैं ।
नीचे लिखी गाथाओंसे भी यह प्रकट होता है कि इस ग्रन्थके कर्ता देवसेनसूरि नहीं कितु माइल धवल हैं
दारियदुण्ययदणुयं परअप्पपरिक्खतिक्खखरधारं । सव्वण्हुविण्हुचिण्हं सुदंसणं णमह णयचक्कं ॥ सुयकेवलीहिं कहियं सुअसमुद्दअमुदमयमाणं । बहुभंगभंगुरावि य विराइयं णमह णयचकं ।। सियसद्दसुणयदुण्णयदणुदेह विदारणेकवरवीरं ।
तं देवसेणदेवं णयचक्कयरं गुरुं णमह ।। इनमेंसे पहली दो गाथाओंमें नयचक्रकी प्रशंसा करके कहा है कि ऐसे विशेषणोंसे युक्त नयचक्रको नमस्कार करो और तीसरी गाथामें कहा है कि दुर्नयरूपी राक्षसको विदारण करनेवाले श्रेष्ठ वीर गुरु देवसेनको जो नयचक्रके कर्ता हैं-नमस्कार करो। यदि इस ग्रंथके कर्ता स्वयं देवसेन होते तो वे अपने लिए गुरु आदि शब्दोंका प्रयोग न करते और न यही कहते कि तुम उन देवसेनको और उनके नयचक्रको नमस्कार करो ।
इन सब बातोंसे सिद्ध है कि छोटे नयचक्रके कर्ता ही देवसेन हैं और माइल्ल धवल उन्हींको लक्ष्य करके उक्त प्रशंसा करते हैं । माइल धवलने देवसेन. सूरिके पूरे नयचक्रको अपने इस ग्रन्थमें अन्तर्गर्भित कर लिया है, ऐसी दशामें उनका इतना गुणगान करना आवश्यक भी हो गया है । ___ माइल्ल धवलने इसके सिवाय और भी कोई ग्रंथ बनाये हैं या नहीं और ये कब कहाँ हुए हैं, इसका हम कोई पता नहीं लगा सके । संभवतः वे देवसेनके ही शिष्यों में होंगे जैसा कि मोरेनाकी प्रतिकी अंतिम गाथासे और देवसेनके लिए श्रेष्ठ गुरु शब्दका प्रयोग देखनेसे जान पड़ता है । कारंजाकी प्रतिके टिप्पणसे भी यही मालूम होता है।
देवसेनमूरि नयचक्रके संबंधमें इतनी चर्चा करके अब संक्षेपमें इसके कर्ता देवसेनसूरिका परिचय दिया जाता है । इनका बनाया हुआ एक 'भावसंग्रह' नामका ग्रन्थ है ।