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जैनसाहित्य और इतिहास
उपाय नहीं है । परन्तु यह एक बड़ा अद्भुत उल्लेख है, क्योंकि निजाम स्टेटमें ( अलेर स्टेशन से ४ मील) जो कुल्पाक नामका तीर्थ है, वहाँके मूल नायककी प्रतिमा ही माणिक्य स्वामीके नामसे प्रख्यात है। श्रीजिनप्रभसूरिके ( वि० सं० १३६४-८९) विविधतीर्थकल्पमें ' कोल्लपाक-माणिक्यदेवतीर्थकल्प' नामका जो कल्प है, उसमें इस तीर्थका और माणिक्यस्वामीकी आश्चर्यजनक मूर्तिका विस्तृत वर्णन दिया है। __ इसी तरह ऐलक पन्नालाल सरस्वती-भवन बम्बईके एक गुटकेमें ( २२६६ ख) एक विना शीर्षककी रचना है जिसमें १७ पद्य हैं और जो भट्टारक धर्मभूषणके विविध शिष्योंके बनाये हुए हैं तथा जिनके अन्तमें प्रायः बनानेवाले शिष्यका नाम दिया हुआ है। उसमें भी कुल्पाक क्षेत्रके माणिक स्वामीका वर्णन किया है:
देस तिलंगमझार, सार कुलुपाक्ष सुजानो। मानिकस्वामी देव, आदि-जिन-बिंब बखानो । चक्रपती भरतेस, तासकर मुद्रिक प्रतिमा । पूजी रावणराय, काज ( ल ?) दुस्सम युग-महिमा । जलनिधि माशाति (?) तदा, संकरराय सपनज लहा ।
निज भुवने जिन आनि ने, तीनिकाल पूजे तहा ॥ इन प्रमाणोंसे स्पष्ट है कि माणिक्य स्वामीकी मूर्ति उक्त कुल्पाक तीर्थकी ही मूर्ति है। इसलिए उक्त लेखके सम्बन्धमें यह तो कहा ही नहीं जा सकता कि गजपंथमें ही माणिक्य स्वामीके दर्शन करके गोदीबाईने जन्म सफल किया था। तब यही कल्पना की जा सकती है कि उक्त शिलालेख किसी तरह किसीके द्वारा कुल्पाकसे यहाँ लाया गया होगा जिसका अब पता नहीं है। माणिक्यस्वामीका तीर्थ अब भी है और वहाँके अनेक पुराने शिलालेखों में उसका उल्लेख भी है।
म्हसरूलके मंदिरमें 'गजपंथाचल मण्डलपूजा' नामकी एक हस्तलिखित पुस्तक है । उसे पढ़कर तो यह करीब करीब निश्चित हो जाता है कि भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति ही इस तीर्थके सृष्टा और विधाता हैं । उक्त पुस्तकके अन्तकी नीचे लिखी हुई प्रशस्ति पढ़िए
" हेमकीर्तिमुनेः पट्टे क्षेमेन्द्रादियशः प्रभुः । तस्याज्ञया विरचितं गजपंथसुपूजनं ॥ २१ ॥