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हमारे तीर्थक्षेत्र
सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० राहुल सांकृत्यायनके मतानुसार गोरखपुर जिलेका पपउर ( पापापुर ) गाँव ही पावापुर है, जो पडरोनाके पास है और कसयासे १२ मील उत्तर-पूर्वको है । कसया गोरखपुरसे ३७ मील पूर्वमें है । मल्ल लोगोंके गणतन्त्रका संस्थागार ( सभा-भवन ) इसी पावानगरमें था । एक बार बुद्ध भगवान् पावाके आम्रवनमें ठहरे थे। जब वे बीमार हो गये, तब वहाँसे कसया या कुसीनाराको चल पड़े और इसलिए उस बारह मीलके अन्तरको वे रास्तेमें २५ जगह बैठ-उठकर मध्याह्नसे सन्ध्याकालतक पार कर सके ।
कल्पसूत्र में लिखा है कि जिस रात्रिको महावीर भगवान्का निर्वाण हुआ उस रातको नव मल्ल और नव लिच्छवि इस तरह अट्ठारह गण-राजाओंने प्रोषधोपवास किया और उनके धर्मोपदेशके अभावमें दीपक जलाकर प्रकाश किया । इससे भी अनुमान होता है कि मल्लोंके गण-तन्त्रके समीप ही भगवान्का निर्वाण हुआ होगा। डा० जैकोबी आदि पाश्चात्य विद्वानोंको भी वर्तमान पावापुरीके ठीक होनेमें सन्देह है।
डा० त्रिभुवनदास ल० शाहने अपने ' प्राचीन भारतवर्ष' नामक गुजराती ग्रन्थमें भिलसाके पासके साँची-स्तूपको भगवान महावीरका निर्वाण-स्थान सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है और उसीको अपापापुरी या पावापुरी बतलाया है। ___ मालूम नहीं वर्तमान पावापुरीमें उसकी प्राचीनताको प्रकट करनेवाले कोई चिह्न लेखादि हैं या नहीं और यदि हैं तो वे कितने प्राचीन हैं । यद्यपि इसकी सम्भावना बहुत कम है । क्योंकि प्राचीनताकी रक्षा करनेमें जैन-समाज उतना ही असावधान रहा है जितना नवीन निर्माण करनेमें कटिवद्ध । फिर भी इस सम्बन्धमें खोजकी जानी चाहिए । पपउरके आसपास भी खोजकी आवश्यकता है।
दिगम्बर और श्वेताम्बर तीर्थ गजपन्थ, तुङ्गी, पावागिरि, द्रोणगिरि, मेढगिरि, कुंथुगिरि, सिद्धवरकूट, बड़वानी आदि तीर्थ ऐसे हैं जिन्हें केवल दिगम्बर सम्प्रदाय ही मानता पूजता है
और इसी तरह फलवर्द्धि (फलोधी), अर्बुदाद्रि (आबू ), स्तम्भ आदि कुछ ऐसे तीर्थ हैं जिन्हें दिगम्बर-सम्प्रदाय नहीं मानता और न उसके साहित्यमें इनका कोई उल्लेख मिलता है। निर्वाणकाण्डके तारउर, पावागढ़, पावागिरि, कुन्थुगिरि, बड़वानी आदि.